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नागरीप्रचारिणो पत्रिका
क्योंकर स्थान दिया गया है । जब खुमान - लिखित एक ग्रंथ १८३६ का प्राप्त हो चुका है तो उनका कविता-काल १८३६ न मानकर १८७० क्यों माना जाय ? पुनः यदि उस ग्रंथ के रचयिता श्रथवा उसके रचना- काल के संबंध में संदेह था तो उसे स्पष्ट क्यों न किया गया ? अस्तु, जो कुछ भी हो जब तक इस संबंध में कोई विशेष प्रकाश नहीं डाला जाता अमरप्रकाश के रचना- काल से ६ वर्ष पूर्व अर्थात् १८३० के करीब खुमान का कविता - काल मानना ही हमें युक्तिसंगत जान पड़ता है और कविता - काल से ३० वर्ष पूर्व उनका जन्म-संवत् मानना उचित होगा। कहा जाता है कि खुमान जन्मांध थे, काव्य-कला की शिक्षा उन्हें किसी साधु द्वारा प्राप्त हुई थी । खुमान हनुमानजी के भक्त थे और उनकी प्रशंसा में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी हैं। यह किंवदंती सुनने में आई है कि खुमान अपना देव संबंधिनी कविताओं में संशोधन नहीं करते थे; एक बार जो कुछ मुख से निकल जाता था उसे आत्मप्रेरित वाक्य समझकर ज्यों का त्यों रहने देते थे । उनकी रचनाओं में जो थोड़ीबहुत साधारण त्रुटियाँ परिलक्षित होती हैं, जान पड़ता है वे उनकी इसी धारणा के परिणाम हैं। फिर भी खुमान की रचनाएँ उत्कृष्ट हुई हैं और उनमें काव्यगुण - विशेषत: अनुप्रास की अच्छी छटा देखने को मिलती है। अब तक की खोज में उनकी नीचे लिखी दस पुस्तकें प्राप्त हुई हैं
(१) हनुमान पंचक - हनुमानजी की प्रार्थना ।
( २ ) हनुमान पचीसी - हनुमानजी के विनय के २५ कवित्त । ( ३ ) हनुमत पचीसी
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(४) हनुमत शिखनख ।
(५) लक्ष्मण शतक- - १२८ छंदों में लक्ष्मण और मेघनाद के युद्ध का वर्णन है । इस पुस्तक की रचना सं० १८५५ में हुई ।
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