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प्रेमरंग तथा श्राभासरामायण
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वैसे राम बान बरसावें । चौदह भुवन त्रास सा पावें ॥ देव दानव मुनि नाग तपावें । गो ब्राह्मन कल्यान मनावें ॥ रावन सों राम का जै सुनावें ॥ १० ॥ | गिराया रघुबर ने बान सों । दशग्रीव जान
रावन का शिर
सीं ॥
ऐसे गिराए सौ शिर
धरा ।
मरा ॥
क्यों कर राम बान जीवाया। दिन रात का युद्ध कराया ॥ जमीन आसमान परबत में धाया । मातली ने ब्रह्मास्त्र बताया ॥ अगस्त दीना बाण दस्त चढ़ाया ॥ ११०॥ डर गए सुर सरग सर प्रभू ने कर ब्रह्मास्र प्रयोग कर सृजा रावन छाती फोड़ रथ सों गेरा। सुर सुरसरि में स्नान कर फेरा ॥ तीर तूणीर पैठा पाय पर चेरा । सुर मुनि ने 'रघुनाथ को घेरा ॥ नक्कारे बजवाय सुमन बखेरा ॥ १११ ॥ चौगर्द देव दल बादल से बानर बमके 1 जै जै सियाबर की कहैं बिभीषन हुए गम के ॥ रावन की किम्मत बखानी । भाई मेरी एक न मानी ॥ राम-बानों सा सोया गुमानी । रावन की कर्नी कर्नी ठानी ॥ राम कहें मेरा अब दोस्त है जानी ॥ ११२ ॥ मंदोदरी रावन मरा सुन कों सखी संग आय । जार जार रोवे रनवास पती के पास खड़ी सब धाय ॥ मंदोदरी मूँड़ उठावे । रघुबर को बिलाप सुनावे ॥ राम हनुमान संबोध समझावे । लछमन जी कर्नी करवावे || कर काज बिभीषन सरन में आवे ॥ ११३॥ लंकेश हुआ बिभीषन हनुमन कही सिय आस । रघुबर की रजा पाय को बिभीषन ले आए पास ॥
* भए ।
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