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प्रेमरंग तथा आभासरामायण निशिचर जो बचे सो भागे । रावन तन में आग सी लागे । दाँत काटे रोवे दुख मों पागे : जाने राम रूप में जागे ॥
हदसाय आसा जीवन की त्यागे ॥६॥ रावन को सुना रोते त्रिसिरा उठा बमक । चार भाई दो चाचा लड़ने की दीनि धमक ॥ हमने तीनों लोक को जीता । मारेंगे बंदर के मीता ॥ भाग जावें सो जावेंगे जीता । युद्धोन्मत्त मत्त सा जीता ॥
महापार्श्व महोदर रन सजीता ॥७॥ देवांतक औ नरांतक अतिकाय त्रिशिर चार । रावन सों खुश खिलत ले लड़ने चले तैयार ॥ सेना सब सर्दार संग दीने । बंदर भी पहाड़ को लीने ॥ हथियार मोर्चे मों मुक्काबले कीने । निशाचर के बंदर ने सीने ॥
फाड़ दाँतों सों हथियार को छीने ॥७॥ घोड़े चढ़ा नरांतक बल्लम सों मारता । कोटों कपी कटे हरीश अंगद पोकारता ॥ भेजा मार स्वार घोड़े का । दौड़ा घेरा ज्वान जोड़े का ॥ प्रास छाती लीनाहाथ कोडेका। ताजुब तिल तिल तोड़े का ॥
तल सों मारा घोड़ा आँख फोड़े का ॥७२॥ नरांतक ने बालिपुत्र के मस्तक चलाई मुष्ट । अंगद की लगी सीने में घुमड़ाय को गिरा दुष्ट ॥ आँखें फाड़ मौत ही पाई । अंगद की जै देव सुनाई। हनुमान सुग्रीव सो बेसवास पाई । राघोजी श्याबाश सुनाई।
बमके बंदर निशाचर फौज भगाई ॥७३॥ नरांतक को मरा सुन को देवांतक दौड़ा। अंगद को दे हटाय तीनों ने हनूमान सो जंग जोड़ा।
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