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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
मोछों पर ताव को फेरा । कहता है बल देखो मेरा ॥ जाहि डालों रघूबर पर घेरा । बंदरों कों भगावता हेरा ॥ श्रीराम कहैं खर सा हाल है तेरा ॥५४ ||
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पर कुढ़ा ।
खर मारन की नोक सुन को राम लड़भिड़ को रथ को तोड़ा तब शूल ले बढ़ा ॥ मारा सो रघुनाथ ने तोड़ा । राक्षस मूकी बाँध को दौड़ा ॥ अगन्यास्त्र से राम ने सीना फोड़ा। खर के खर ने प्रान को छोड़ा | सेना सब लंका भागी पीठ न मोड़ा । ८५॥
मकराक्ष को सुन रावन ने दाँत बजाय । मेघनाद भेजा जाता है सिर नवाय ॥ अपना इष्ट होम बर दीना । छिप कपि में कतलाम सा कीना ॥ राम लछमन को भी पेंच में लीना । रावन का कुमार है चीन्हा ॥ ब्रह्मास्त्र सों भागा दर्शन न दीना ॥ ८६ ॥ पछिम तरफ गया सिया माया बनाय को । हनुमान हग ढराए सिया-बध देखाय क ॥ बंदर ज्यों बादल उड़ाए । लाखों लोथ कर दिखलाए || हनुमान पिलचे सब कपी पर धाए । नगशृंग सों मार हटाए ॥ पछताय फिरते रोते राम सेवाए ॥८७॥
मरा
सिया मरन हनुमान कहा राम सुन बदन फिरे । कदली कटे पटे से ऐसे घूम घूम घरराय गिरे ॥ लछमन ने संबोध सुनाया । बिभीषन दौड़ा आया ॥ उठाय प्रभु को हथियार सजाया । भतीजे का भेद बताया ॥ संग लाय लंका पर लछमन चढ़ाया ॥८८॥ बिभीषन का बचन सुन प्रभु सौमित्रि सों कहा । हनूमान् अंगद मिल दुष्ट मारो मैंने कष्ट बहुत सहा ॥
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