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नागरीप्रचारिणी पत्रिका घूसे से सिर फाड़ डाला है । महोदर को नील ढाला है । रन में त्रिशिर पर हनुमान बाला है।तीनों सीर को काट डाला है।।
ऋषभ महापार्श्व को मार डाला है ॥४॥ अतिकाय अति प्रचंड है पराक्रमी महा । बिभीषन को राम पूछा रावन कुमार कहा ॥ बंदर कों बिस्तर सा कीना । लछमन ने सन्मुख सों लीना ॥ कैएक अस्त्र से हराय भी दीना । पवन के कहे से चीन्हा ।।
ब्रह्मास्त्र मारा सिर कंकरी बीना ॥७॥ सेना बची सो जाय को रावन को डराया। जाना प्रभू हैं राम कों हिम्मत से हराया ॥ चौकी चारों ओर सजाई । इंद्रजीत ने आज्ञा पाई ॥ ब्रह्मास्त्र विद्या अंतरध्यान देखाई । बंदर गर्दी कर देषलाई ।
साठ करोर निशाचर फौज मँगाई* ॥७६॥ सरदार सब सोलाए कोई नहीं बचे। हनुमान बली बिभीषन निरबंच हैं बानर बचे ।। डंका दै लंका को परता । रावन सुन संतोख को धरता ।। सुत गोद बैठाय चुंबन कों करता। बिभीषन हनुमान बिचरता ।।
पहेचान जांबवान के गोड़ पर गिरता ॥७७|| सुनो पवन के कुमार जांबवान ने कहा। औषध ले आय जिवाओ प्रभु ब्रह्मास्त्र को सहा ॥ सुनते ही बदन बढ़ाए । औखद के पहाड़ को ल्याए । आते ही लश्कर में बंदर जिलाए । लछमन बालाराम उठाए।
धर आय गिर कों किलकार कराए ॥७॥ हुकुम हुआ रघुनाथ का लंका जलाय दीया । राखस त्रियाँ सर्वस जला दरियाव लाल कीया ॥ ** सड़सठ करोड़ निज फौज काम प्राई ।
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