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नागरीप्रचारिणी पत्रिका ऋषभ कपि पाँच मिल पाए । पाँचों को बेदम सोलाए ॥ अंगद कैएक पहाड़ बरसाए । निशिचर तिल तिल उड़ाए ।
त्रिशूल मारा अंगद छोड़ बचाए ॥६४॥ अंगद उछल तमाचा लगतेहि घुम गिरा । उठ हँस को एक डुच सों कपि को गिराय फिरा ॥ बंदर का बिछौना कीना । सुग्रीव को साम्हने लीना ॥ छाती में भिन्नाय त्रिशूल को दीना। हनूमान ने अधर में छीना॥
दो टूक कीया लागन न दीना ॥६५॥ चिढ़ को पहाड़ फेंका सुग्रीव को लागा। उठाय ले चला लंका मो टुक धीर सों बीर जागा ॥ मनसूबा कर कूख को फाड़ा । कानों नाकों नोच उखाड़ा। डरपाय रघुबर सरन में ठाड़ा । नकटे ने मुग्दल को झाड़ा ।
भगाए बंदर धर लीना धाड़ा ॥६६।। साथ ले बिछाय आवता लछमन अड़े लड़े। सर सो रिझाय राम को देखाय दिए खड़े॥ अचल सा अचल पर धाया । निशिचर बंदर दोनों खाया ॥ हाथ आया मुख में डाल चबाया । रघुबर ने अस्तर चलाया ॥
घुमता आया लोहू माँस नहाया ॥६॥ निशिचर ने कहा राम मैं बिराध नहीं कबंध । बाली नहीं न मारिच मैं कुंभकरन धुंध ॥ मुग्दल से मैं देव भगाए । कहते दोनों हाथ उड़ाए ॥ धाय आए दोनों पाव कटाए । सच्चा राम बान चलाए ।
सिर काट लंका द्वार बाट छेकाए ॥६॥ बाजे बजाय देव पुहुप पावस बरखें। गंधर्व नाग यक्ष मुनी देखें हरखें ॥
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