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प्रेमरंग तथा आभासरामायणे
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लछमन सुन कमान कों लीना । बिभीषन की बात को चीन्हा ॥ हनुमान अंगद की फौज संग दीना । रघुबर की परदछिना कीना ॥ आय निकुंभिला सीम को छीना ||८|| बिभीषन कहे लछमन सों यहि गोल जो गिरे । बिन होम हुए चिढ़ कों बिन रथ मिले फिरे ॥ मारा तभी जायगा दुशमन । सुन बान बरसाए लछमन ॥ बंदर लड़ावें ललकार बिभीषन । निशिचर देखें कीन्हे कदन ॥ वहीं दौड़ा चढ़ पहले स्पंदन ||२०||
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हनूमान पर चलाया एक तीर बेकदर | ललकार को बिभीषन लछमन मोहोब्बिलू कर ॥ हनुमान पर स्वार कराए। इंद्रजीत के सामने आए ॥ बढ़ा बरगत बिन पर छोड़ाए । लछमनजी को भेद बताए ॥ अंतर्ध्यान होते इस को हाथ लगाए ॥ ६१॥ चाचा को चिढ़ भतीजा कहता कटुक बचन । चाचा कहैं बके जा मरने को तेरा चिह्न ॥ लछमन सों बकवाद करता है । हथियारों की मार करता है ॥ हनुमान पर चढ़ लछमन भिड़ते हैं । रन में बराबर लड़ता है लछमन कहें नीच आज मरता है । ६२ । कवच कटे दुहुँन के सर-जाल भरे अकास । एक एक के बान काटे गटपट भए सब पास ॥ बंदरों ने घोड़ों को फारा । रथवान का सिर उतारा ॥ लछमन ने निशाचर के गाल बिदारा । कै एक बिभीषन ने मारा | छिप जाय रथ ल्याय इंद्रजीत ललकारा ॥ ८३॥
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अस्तर
लछमन निशाचर
निवारता ।
अन
मार कों बंदर
बिदारता ॥
६१ ~~मोहोब्बिल् = ( श्र० मुहिब ) प्रीति से ।
चलावे
अपाना
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