Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 13
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 69
________________ प्रेमरंग तथा आभासरामायणे ४५५ लछमन सुन कमान कों लीना । बिभीषन की बात को चीन्हा ॥ हनुमान अंगद की फौज संग दीना । रघुबर की परदछिना कीना ॥ आय निकुंभिला सीम को छीना ||८|| बिभीषन कहे लछमन सों यहि गोल जो गिरे । बिन होम हुए चिढ़ कों बिन रथ मिले फिरे ॥ मारा तभी जायगा दुशमन । सुन बान बरसाए लछमन ॥ बंदर लड़ावें ललकार बिभीषन । निशिचर देखें कीन्हे कदन ॥ वहीं दौड़ा चढ़ पहले स्पंदन ||२०|| I हनूमान पर चलाया एक तीर बेकदर | ललकार को बिभीषन लछमन मोहोब्बिलू कर ॥ हनुमान पर स्वार कराए। इंद्रजीत के सामने आए ॥ बढ़ा बरगत बिन पर छोड़ाए । लछमनजी को भेद बताए ॥ अंतर्ध्यान होते इस को हाथ लगाए ॥ ६१॥ चाचा को चिढ़ भतीजा कहता कटुक बचन । चाचा कहैं बके जा मरने को तेरा चिह्न ॥ लछमन सों बकवाद करता है । हथियारों की मार करता है ॥ हनुमान पर चढ़ लछमन भिड़ते हैं । रन में बराबर लड़ता है लछमन कहें नीच आज मरता है । ६२ । कवच कटे दुहुँन के सर-जाल भरे अकास । एक एक के बान काटे गटपट भए सब पास ॥ बंदरों ने घोड़ों को फारा । रथवान का सिर उतारा ॥ लछमन ने निशाचर के गाल बिदारा । कै एक बिभीषन ने मारा | छिप जाय रथ ल्याय इंद्रजीत ललकारा ॥ ८३॥ 11 अस्तर लछमन निशाचर निवारता । अन मार कों बंदर बिदारता ॥ ६१ ~~मोहोब्बिल् = ( श्र० मुहिब ) प्रीति से । चलावे अपाना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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