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नागरीप्रचारिणी पत्रिका चोटें सँभाल नील पिला शिला उठाय मस्त । जबर्दस्त प्रहस्त का मस्तक छितराय गए अस्त । सेनापत रावन का मारा । जस लै नील सेना संभारा॥ निशिचरने जाय रावन पोकारा। डरपाय हिम्मत भी हारा ॥
आप आया सब सहाय को टारा ॥५५॥ रथ पर देखो लंकेश को सब सज खड़े सहाय । सबके नाम राम पूछा बिभीषन दिया बताय ॥ इन्हीं ने त्रैलोक्य हराया । रावन ने सब को रोवाया । परधान मरासुन प्रापचढ़ आया। जिनने प्रभु की नार चोराया।
देव दानो का मक्कान छोड़ाया ॥५६।। रघुबर कहें मारो मुकर न जावता फिरे । सब देव सजन देखें बाणों सों सिर गिरे ॥ अकेला रावन पिला है। सुग्रीव सजीव गिरा है। हनुमान मुष्टीसों कष्टी हिला है । नील की फुर्ती देख खिला है।
- लछमन बली को बर्थी कीला है ॥५७।। लछमन उठाए ना उठे हनुमान ने लखा। रावन गिराय ल्याए लछमन को निज सखा । देखा रघुनाथ रिसाने । सनमुख सिया-चोर देखाने । रामबान लगे नंगा होय पराने । भागा रावन देव हरखाने ।
- लछमन बाँदरों के जखम झुराने ॥५८।। यों सहज बान चीखे तीखे लगे कठोर । कहा कुंभकरन जागे लागेगा मेरा जोर ॥ मुश्किल सो भाई जगाया। उठा जो पर्वत देखाया । आय रावन सों सनमान को पाया।महोदर को डाँट दबकाया॥
सिरपाव पाय लड़ने को धाया ॥५॥
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