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नागरीप्रचारिणी पत्रिका गश सो उठे जब राम पास अनुज गिरा देख । अनेक सर बिधे रुंधे से प्राण हैं बिसेख ॥ ब्रह्मा के बचन को पाला । सुषेण संजीवनी माला ।। सुपर्ण आए साँप सीस को ढाला । सखा कहके भेंट बैठाला ।।
निवृन उठे सभी सेन सम्हाला ॥४५॥ धीरज दिया टंकार कर चिक्कार कपि करे। सुन भूपती भुवनपति भूतों के पति डरे ॥ रावण को संभ्रम ने घेरा । उठे सब कहता है चेरा॥ राम आय लंका द्वार पर डेरा । लंकेशजाना मौत है मेरा ॥
ललकार धूम्राक्ष लड़ने को प्रेरा ॥४६॥ धूम्राक्ष को निकलते होता है अपसगुन् । मुकर जाना मरणा है सनमुख देखे हनुमन् ॥ बानों की बरसात बरसाई । बंदर मारे फौज भगाई ॥ यह देख हनुमान शिला उठाई । निशिचर ने गदा चलाई।
बचाय मारी शिला मौत ही पाई ॥४७॥ धूम्राक्ष मरा सुनकर रावण को चढ़ा काल । बज्रदंष्ट्र भेजा रघुबर को मार डाल ॥ फौजें अपनी संग ले चढ़ता । सगुन् भोड़े देख को डरता ॥ दखिन दरवाजे अंगदो लड़ता । अगिन औकाल सा बढ़ता ॥
देख अंगद भी ललकार को भिड़ता ॥४८॥ एक पेड़ कपि ने फेंका निशिचर ने दीना तोड़। नग-शृंग चलाए रथ पर तिल तिल सा दीना फोड़। कूदा निशिचर लपटाना । कुस्ती मुकी हारा जाना ॥ उठाय वेगा ढाल लड़ना ठाना । अंगदखाईचोट घुमड़ाना ॥
__ सँभाल मारी तेग सीस मिन्नाना ॥४॥ ४५-सुपर्ण =गरुड़। निवृन = (निव्रण) व्रण या घाव से रहित ।
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