Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 13
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ ४४५ प्रेमरंग तथा आभासरामायण मारों की घात बचावें । अपना अपना नाव सुनावें॥ महल तोड़ें ओ खंदक पटावें । निशिचर जमपुर को जावें ॥ रघुनाथ सेवक वैकुंठ को धावें ॥४०॥ नदियाँ बहीं रुधिर की मुरदों का हुआ कीच । जोड़ों सों जोड़े गठ गए बाजे बजे रण बीच ॥ अंगद इंद्रजीत हराया। हरिश से प्रघस मराया ॥ हनुमान जंबुमालीमार गिराया। लछमन विरूपाक्षसों लाया।। मित्रन्न रावण के भाई ने खाया ॥४१॥ सुप्तधन जघन कोप सों रघुबर से लड़े चार । एक एक कों एक तीर सों चारों को डारे मार ॥ कैएक बंदरों ने मारे । राखस सब जोड़ों से हारे ॥ भाग गए सो लंकेश पोकारे । हाथी रथी अश्व बिदारे । कबंध उठे मारो मार पोकारे ॥४२॥ कालरात कतल की सी रात हो गई। कोई को कोई न देखे* ऐसी कटा भई॥ हारा इंद्रजीत भी परता । छिप को माया-बल को करता। हराम जमीन मों पाँव न धरता । अस्तर बरसात सा करता ॥ कै कोट काटे सिर भुटों सा गिरता ॥४३॥ सोय गए सब कोई नहा खड़ा दिसे । रघुबीर दोनों बीर को नख-सिख लौं सर धसे ॥ कसे दम ज्वान गिरे से । बिभीषन सुग्रीव डरे से॥ सर जीत चलामानों काम सरेसे । सीता को देखाय मरे से॥ समुझाय त्रिजटा ने ले जाय परे से ॥४४॥ ७ जाने। + अस्तर सर बरसात सा भरता। ४३-कटा=मार-काट । हराम= पिशाच । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118