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प्रेमरंग तथा आभासरामायण ४४३ ऐसा जो दुष्ट देखा हरीफ को हरीश। सिर छत्र चवर दुरे बुरे दश बिराजे सीस ॥ मुकुट दश चंद से चमके । बाँदर राजा देखते बमके ॥ छलांग मारी दशग्रीव पर धमके। छिन एक गारी देन को ठमको।
उछल्ल पटका दोनों जंघ में लपटे ॥३॥ झपट लपट मुकुट पकड़ पटक दीया धर केश । गटपट भए अटा पर मर्कट भए पिंगेश । लंकेश को हारा है जाना । माया बल करेगा माना । होठ दाँतों सों पीस गरमाना। सिर में थोपी मार उड़ाना॥
समीप राघो के पर पाय सरमाना ॥३२॥ हित राम कहें हरिवर तुम्हे उचित नहीं साहस ।
आफत जो होती तुम पर मुजकों होता अपजस ॥ ऐसा काम फेर न कीजे । बैठो फलाहार कीजे ४ ॥ हिस्सा लगाय सभों+ को दीजे । सबों की सल्लाह लीजे ॥
सगुन होते हैं दुशमन जो छीजे ॥३॥ सुबल सो उतरकर लशकर मों आय मिले । हनुमान नील अंगद मोर्चे में गए चले ॥ प्रभु सुग्रीव सों बोले । देखो उतपात के डोले ॥ मौतमांगे निशिचर के गोले । कपिवर को संग लिए डोले ॥
तर्कश औ कमान को ताले ॥३४॥ रावण ने सुना बंदर दरवाजे आय अड़े। दहशत से क्रोध कर कों निशिचर किए खड़े।
पकड़। 8 आता। * जेईजे ।
* उड्डान। जंग में जमके। + सभो।
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