________________
४४४
नागरीप्रचारिणी पत्रिका राघो जी ने दूर सों जाना । लड़ेगा मुकर्रर गरमाना ॥ दीनदयाल दया पहेचाना । वकील से कहलाय पठाना* ॥
अंगद सब सुन संदेस उड़ाना ॥३५॥ निशिचर की सभा जाय को अंगद खड़े रहे। रघुनाथ के संदेसे रावण से सब कहे ॥ जीवन का जतन करेगा। भाई ओ बेटा मरेगा। राजधानी लंका शहर जरेगा । सीया दे शरन परेगा।
बचाव यही जो वचन धरेगा ॥३६॥ सुनकर पकड़ा निशाचर चारों को कहा धरो । मानुष का दूत बंदर को बंध में करो॥ राखस चारों अंगद सों चिपटे । छलांग सौ छूट पड़े रपटे । प्रसाद महल पर झपटे । अटारी को तोड़ उछल दपटे ।।
रघुबर के चरण से लपटे ॥३७॥ अंगद की बात सुन को लंका तैयार देख । कुढ़के सिया निरोधथान लेख बिरह के भेख ॥ बंदरों ने नजर पहेचानी । भिड़ना है सल्लाह जानी ॥ उछल चढ़े लंका राजधानी । प्रभू ने कबूल कर मानी ।
हुकुम किया लड़ना है ठानी ॥३८॥ नल पनस चढ़ नगर उपर अनेक संग सहाय । रावन को खबर पहुँची गढ़ी को घेरी आय ॥ लड़ने को हुकुम फरमाया । नक्कारे औ शंख फुकाया । निशिचर कोललकार लड़ाया। एकेक बंदर धर नीचे गिरवाया ॥३॥
पहाड़ पेड़ दाँत नखों सो गिरावते । राखस भी प्रास बाण पेड़ोंx से लड़ावते ॥
* कहलावना ठाना । | कोप कर। डेवढ़ी। 8 के एक । ४ पटों। ११-दहशत = डर। मुकर अवश्य । ३८-निरोधथान = कारागार ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com