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नागरीप्रचारिणी पत्रिका मध्य गोल खड़े करन विरूपाक्ष से कहा। लंका सजी सभा तजी राजी महल रहा । राघो जी ने सभ्य बुलाए । लछमन ौ सुग्रीव सब आए । हनूमान अंगद बिभीषन बैठाए । दुश्मन के मकान देखाए ।
इस लंक ने देव दानो हटाए ॥२६॥ रघूनाथ सो बिनय सों कहते हैं बिभीषन । मेरे रफीक चारों आए हैं इसी छिन । लंकेश लंका त्यार कराई। प्रहस्त पूरब जिम्मे पाई॥ पश्चिम दल पूत पठाई । दखिन दरवाजे दो भाई॥
उत्तर आया आप चढ़ाई ॥२७॥ बिभीषन का वचन सुन को नील कों दिया प्रहस्त । दखिन दिया अंगद को महापार्श्व महोदर मस्त ॥ हनूमान को रावण का बेटा । मेरा है लंकेश से भेंटा॥ सुग्रीव रहे बीच फौज लपेटा । निशिचर को देखाय दपेटा ॥२८॥ सरदार संग ले प्रभु सुबेल गिरि चले। देखि चाँदनी सुगंध पवन-बिरह से जले ॥ लंका को निहार बखानी । खाई में दर्याव सा पानी॥ अगम देखी लंका राजधानी । बागीचे नंदन के सानी॥
महलात मानों कैलास देखानी ॥२६॥ सुवर्ण की देवाल रतन मोतियों मढ़ी। प्रवाल थंभ घर घर पर्वत बनी गढ़ी। धनेश का विमान ले आए। इंद्र का ऐश्वर्य गिराए । पास बरुण ने छिपा बचाए । यमराज ने दंड छिपाए ॥
तीनों भुवन की तिरिया हर ल्याए ॥३०॥
२७-रफीक = मित्र । २१-सानी-परापर ।
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