Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 13
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ ४४० नागरीप्रचारिणी पत्रिका दोनों जाओ खबर ले आओ सिरोपाव पाओगे। सरदार सब समुझ को मुजको जताओगे। दोनों बंदर बने हैं। सर्दार के ए गिने हैं। पैचान बिभीषन ने धर लीने हैं । मंत्री सुक सारन् चीन्हे हैं। छोड़ाय प्रभू को देखन दीने हैं ।।१६।। सारन ने सुन संदेशे रावण से सब कहे । लंका निशाचर राजा सिय को दिये रहे। राघो जी से रन पड़ेंगे। लछमन श्री सुग्रीव लड़ेंगे। भेदो बिभीषन भाई भिड़ेंगे। हनुमान अंगद बढ़ेंगे । उनके मुकाबिल कौन अड़ेंगे ॥१७॥ जांबुवान नील नल सुषेण शत बली रभस । मैंद द्विविद कुमुद तार डंभ गज पनस ॥ गवय शरभ गंधमादन । गवाक्ष श्री केसरी तपन ॥ काढ़ेंगे कराल रदन । सुनकर मलीन कर बदन । चढ़े हैं प्रसाद सदन ॥१८॥ रावण कहे सारन से बंदर का कहो सुमार । कुमार किसके बल क्या दल क्या कहे पोकार । सारनु कहे सुन दीवाने । तुससे जबर चार बखाने । राम लछमन के निशान फर्राने । बिभीषन सुग्रीव टर्राने ।। कइ कोट अर्बुद बंदर अर्शने ॥१८॥ मद देवों के कुमार तेरा बर औ बल बिचार । बाँदर लँगूर रीछ सों छाया है आरपार ।। सीया दे जीया जो चाहे । दसो सीस खावेगा काहे ॥ निर्लज्ज तुझे मैंने जाना है। राजा को चोरी बेजा है ।। सीता इहाँ जमराज भेजा है ॥२०॥ १६-सिरोपाव = खिलश्रत, पुरस्कार में पाए हुए वन । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118