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नागरीप्रचारिणी पत्रिका दोनों जाओ खबर ले आओ सिरोपाव पाओगे। सरदार सब समुझ को मुजको जताओगे। दोनों बंदर बने हैं। सर्दार के ए गिने हैं। पैचान बिभीषन ने धर लीने हैं । मंत्री सुक सारन् चीन्हे हैं।
छोड़ाय प्रभू को देखन दीने हैं ।।१६।। सारन ने सुन संदेशे रावण से सब कहे । लंका निशाचर राजा सिय को दिये रहे। राघो जी से रन पड़ेंगे। लछमन श्री सुग्रीव लड़ेंगे। भेदो बिभीषन भाई भिड़ेंगे। हनुमान अंगद बढ़ेंगे ।
उनके मुकाबिल कौन अड़ेंगे ॥१७॥ जांबुवान नील नल सुषेण शत बली रभस । मैंद द्विविद कुमुद तार डंभ गज पनस ॥ गवय शरभ गंधमादन । गवाक्ष श्री केसरी तपन ॥ काढ़ेंगे कराल रदन । सुनकर मलीन कर बदन ।
चढ़े हैं प्रसाद सदन ॥१८॥ रावण कहे सारन से बंदर का कहो सुमार । कुमार किसके बल क्या दल क्या कहे पोकार । सारनु कहे सुन दीवाने । तुससे जबर चार बखाने । राम लछमन के निशान फर्राने । बिभीषन सुग्रीव टर्राने ।।
कइ कोट अर्बुद बंदर अर्शने ॥१८॥ मद देवों के कुमार तेरा बर औ बल बिचार । बाँदर लँगूर रीछ सों छाया है आरपार ।। सीया दे जीया जो चाहे । दसो सीस खावेगा काहे ॥ निर्लज्ज तुझे मैंने जाना है। राजा को चोरी बेजा है ।।
सीता इहाँ जमराज भेजा है ॥२०॥ १६-सिरोपाव = खिलश्रत, पुरस्कार में पाए हुए वन ।
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