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नागरीप्रचारिणी पत्रिका सुनकर उठे निशाचर हार्थों में ले हथियार । इंद्रजीत प्रहस्त महोदर लड़ने को पल्लेपार ॥ सभी को मारेंगे सोते । जीवेंगे सो जायँगे रोते ॥ कै एक दर्याव में खायेंगे गोते । उनों की प्राइ है मोते ॥
जो कोइ हमन से बैर बोते ॥६॥ धीमान सुन बिभीषन कहते हैं सिर नवाय । सुंदर सलाह सिया द्यो रघुबर की सरन जाय । लंका को उजाड़ डालेंगे। भाई तेग मार डालेंगे॥ बँदरे बेटों को बिदार डालेंगे । बरदान बहाय डालेंगे।
दस सोस बानों से काट डालेंगे॥७॥ रावण कहे अमर हो मैं अगिन को द्यों जलाय । मौतों को मार डालों सूरज कों द्यों गिराय ॥ तैंने मुझे क्या बिचारा । नदियों की उलटाय द्यों धारा॥ कैयक राजों की हर ल्याया दारा । बंदर निशिचर का चारा॥
मुकर मैंने रघुबर को मारा ॥८॥ धिक्कार है भाई तुझे नहीं मेरा दुशमन । बातें बनावता जलावता है मेरा तन ॥ बिभीषन सुन को रूठे। मारे सभी जाओगे झूठे ।। संग संगी चारों यार भी ऊठे। आए हैं हरीश जहाँ बैठे।
बीच देषे रघुनाथ अनूठे ॥६॥ आकाश सौ पुकारा रघुनाथ की सरन । लंका सदन सजन छोड़ा एक मासरा चरन ॥ बिभीषन नाम है मेरा । हरीश ने हरीफ सा हेरा ॥ हनुमान कहैं इनकों दीजिए डेरा । प्रभु कहे भाई सा चेरा ॥
जो कइ एक बार सरन का टेरा ॥१०॥ १०-हरीफ शत्रु।
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