Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 13
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 50
________________ ४३६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका ब्रह्मा- बचन सुमिर मारुतसुत अत्र सूत्र सों अंग धरयो । नृप दरसन भाषन बिफरन बिचरन स्वतंत्र तन जंत्र करो || हनु०||१७|| बाँध निशाचर नृप देखलाए कहो बाँदर तोहें कौन पठाए । राम* हरीश कुशल कहि तुमको कुशल सिया ले पाय परो || हनु०॥१८॥ रामबान से बाल गिरे खरदूखन त्रिशिरा ठौर मरे । अज महेंद्र शिव शकति नहीं सिय-चोर बचावन बचन धरो ॥ हनु० ॥ १ ॥ स्पंदन चढ़ लड़ना बिसरायो भय पायो मारन फरमायो । अनुज बिभीषन कहि निषेध पुनि पूँछ जरन को मंत्र ठरो || हनु०॥२०॥ पूँछ जरावत नय फिरावत हरकारा कहि टेरत मारत । लघु होय बदन छोड़ाय अगिन सों तज स्वकीय गढ़ लंक जरो || हनु०॥ २१ ॥ कारज सिध कर पोंछ बुझायो हाँक सुनाय उदधि लँघ आयो । जांबुवान अंगद जस गायो मधुबन पैठ बिनाश करो || हनु० ||२२|| दधिमुख जाय हरीश पोकारा हनूमान अंगद मोहे मारा । मुकर सिया को देखि बिचारा जाओ पठाओ माफ करो || हनु०||२३|| राम समीप पहुँच पद परसे देखी सिया निशाचर घर से | रुदित मुदित मुखपंकज-मनि ले सुमिर सनेह बिरह बिफरो || हनु० ||२४|| कहो सँदेस यासों सुने सब यहि जीवन की आस रहि अब । काक तिलक की कथा सुनत प्रभु हाय सिया कहि आँख भरो || हनुः ॥२५॥ 'प्रेमरंग' श्रीराम परम द्युति सर्वस ज्ञान अलिंगन दीनो । कृत कृत मानत कहत पवनसुत प्रभु प्रताप ऐसा सुधरो || हनु० || २६॥ इति श्री प्रभासरामायणे सुंदरकांडः समाप्तः । युद्धकांड ( रागिनी पहाड़ी ताल, छंद पंचपदी सूरबीर की चाल से पँवाडा ) सुनकर जो कुछ हुआ सो हनुमन् सराहे राम । दूजा नहीं न होगा निशिचइ में काढ़े काम ॥ * भ्रात । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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