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प्रेमरंग तथा प्रामासरामायण ४३६ बोलाय को मिलाय को चरन धराय कों। लंका का भेद पाय को राजा बनाय को॥ सभी सुख सो बिराजे । चेरा शार्दूल पर राजे ॥ देख दौड़ा रावन दरवाजे । समुदर पर बंदर गाजे ॥
सुन सुबा सो सल्लाह साजे ॥११॥ गगन सों सुआ बोला रघुनाथ के समीप । रावन कुशल कहा बखानता है लंक दीप ॥ लंकेश है काल का जैसा । दरियाव दान में वैसा ॥ हरीश-नरेश जीतोगे कैसा । बंदरों ने रौंदा ऐसा॥
कसम् करता औ मरता है तैसा ॥१२॥ सबकी सलाह सों किए बासर उपास तीन । शेष तज सीराना रघुनाथ हाथ कीन ॥ दया दर्याव न जानी । उठकर कमान को तानी ॥ काँपगए तीन लोक के मानी । कर जोड़ को गोड़ गिरा पानी ॥
प्रभू की कीरत बखानी ॥१३॥ सर को फेंकाय मारवाड़ देश सुध कराय । नल कों बताय पुल को पानी गया परि पाँय ॥ दिन पाँच मो पुल बनाया । लश्कर पते पार चलाया ॥ हनूमान अंगद दोनों बीर उठाया। सुबेले मुक्काम कराया ॥
सुबा छोड़ने का हुकुम फुरमाया ॥१४॥ सगुन् मुमारख देख को लछमन सो कहे राम। दिल सो हुलास यों है सुर-मुन के साधे काम ॥ मुक्काम मोर्चे पर साजे । लंका में नक्कारे बाजे॥ सुन बंदर बमके ओ गाजे । सुबा के संदेश सो लाजे॥
रावन आगे सारन बिराजे ॥१५॥
१५-मुमारख=राम।
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