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नागरीप्रचारिणी पत्रिका प्रभु बाल के बैर में भागत में कर गोपद सी कै बेर घुमाई । तीन दिसा फिर आए कपी हनूमान सँदेस की आस बंधाई ॥२०॥ दंडक बिंध्य मलाद्रि सहेंद्र को ढूँढ़त भूख पियास के गाढ़े। बिल देख फँसे फल फूल दिसे कोई रोज बसे सो स्वयं प्रभु काढ़े ॥ ऋतु बीतु गए सो लगे मरने संपाति संदेश सो बाँदर बाढ़े। छाल गिनाय थके न सके जांबुवान कहे हनुमान से ठाढ़े ॥२१॥ जन्म समै शिशु रूप तुम्ही रवि लेन चले तब राहु चलाए । राहु को छोड़ गजेंद्र पै धावत वज्र लगे हनूमान कहाए ।। वायु के कोप से देव बोलाय अवध्य कराय अती बल पाए। 'प्रेमरंग' प्रभू को प्रतीत तुम्हीं उठ काज करो सँग अंगद आए ॥२२॥ इति श्री आभासरामायणे किष्किंधाकांड: समाप्तः ।
सुंदरकांड ( राग भैरव, धीमा तिताला, पद की चाल सों कवित्त) हनूमान जीवन सब के तुम उठ सीता की खोज करो ॥ हनू० ॥ कहि संपाती पार जान की उछाल लगावन बल सुमिरो ॥ हनू० ॥ तब रावन रिपु सिया खोज की सुध पाए बल बदन बढ़ाए । जांबवान अंगद सुख पाए कहा सभन को यहिं ठहरोहिनू०॥१॥ एतना कहत बढ़े मारुतसुत कही अंगद को धीर धरो। लंक उठाय धरों उत ते इत सुखी होय बानर विचरो ॥हनू०॥२॥ चूरन नग कर गगन गती धर कर धर के मैनाक कका पर । नाग-मात कों गर्व हरन कर मार सिंहिका पार परो ॥ हनू०॥३॥ मारजार सम बपु कर निसिमुख लंक जीत देखत डगरो । चंद्र चाँदनी चमक चहू दिस बन उपबन सब ढूंढ़ि फिरोहनू०॥४॥
२१--छाल = उछाल, कुदान ।
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