Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 13
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 23
________________ (१४) प्रेमरंग तथा श्राभासरामायण [ लेखक-श्रीब्रजरत्नदास बी० ए०, एल-एल० बी०, काशी ] हिंदी-साहित्य के इतिहास पर दृष्टि दौड़ाने से ज्ञात होता है कि भारतेंदु-काल के पहले उसके गद्य या पद्य दोनों ही भागों में प्राचीन काव्य-भाषा, मुख्यतः ब्रजभाषा का दौरदारा था। उसके साथ साथ अवधी को भी स्थान मिला था। स्थानिक बोलचाल के शब्दों या शब्द-योजनाओं का भी मेल बराबर मिलता अवश्य है पर उनका काव्य-भाषा की परंपरा में कोई स्थान-विशेष नहीं है। इस प्राचीन समय से चली आती हुई काव्य-भाषा का प्राधान्य, देखा जाता है कि, ब्रजमंडल से लेकर विहार की सीमा तक के प्रांत भर में था, जिसके अंतर्गत अवधी भी सम्मिलित है। इस विशद प्रांत, ब्रजभाषा के दुर्ग के बाहर रहनेवाले अन्यभाषा-भाषी जिन कवियों ने हिंदी भाषा को अपनाया है उनमें खड़ी बोली हिंदी ही का प्राधान्य है, प्राचीन काव्य-भाषा का नहीं। इस प्रांत में भी खड़ी बोली हिंदी के जो प्राचीन कवि हो गए हैं उनमें मुसलमान ही अधिक हैं। हिंदुओं द्वारा मुसलमानों की उक्ति के लिये इस भाषा का प्रयोग हुआ है। प्रथम कोटि में अमीर खुसरो, नवाब अब्दुरहीमखाँ खानखाना आदि हैं और दूसरी में भूषण, सूदन आदि । इनके सिवा कुछ ही कवि ऐसे हुए हैं जिन्होंने इस खड़ी बोली हिंदी में कविता की है और वे इन दोनों कोटियों में नहीं आते। इनमें शीतल, भगवतरसिक, सहचरिशरण आदि मुख्य हैं। पर साथ ही यह ध्यान रखना चाहिए कि इन सभी कवियों ने खड़ी बोली हिंदी में मुक्तक काव्य की रचना की है पर आज एक ऐसे कवि का परिचय दिया जाता है जिन्होंने खड़ी बोली हिंदी में प्रबंध-काव्य की रचना की है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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