Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 13
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 31
________________ प्रेमरंग तथा आभासरामायण ४१७ (शार्दूलविक्रीडित छंद) सेए राम सुभाई के गुन कहे मोको हरावे जबें । बोले तात न कीजियो दुरमती जा जीवता तूं अबे ॥ सेंमि भाई राय के नगर का राजा बनोगा नहीं। तारा अंगद प्राण त्याग करिहैं मैं भी मरोंगा जहीं ॥ (मत्तमयूरा छंद) बोले राजा दासहि आग्या कर दीजे । सीता जाने राम कहें खोज न कीजे ॥ बंदर भेजे चार दिसा की भूई भाखी । जाओ खोजो मासहि आवो मन राखी ॥१०॥ . (शिखरिणी छंद) कहो कैसे जावें कहत हँस वृद्धा कपिन सों। मुंदाओ आँखों को सबन हम काढ़ें विपन सों। ढंपी आँखें काठे मलयगिरि देखा उदधि पें। बड़ी चिंता व्यापी सब मकर बीता जलधि पें ॥११॥ निवेदन जिन प्रतियों के आधार पर आभासरामायण का पाठ संशोधित किया गया है, उनके दाताओं का मैं विशेष रूप से आभारी हूँ। यहाँ उन प्रतियों का विवरण दे दिया जाता है। १–यह हस्तलिखित प्रति संवत् १८६७ के भाद्रपद शुक्ल १ गुरुवार को समाप्त हुई थी। इसमें ३१ पत्रे हैं। प्रत्येक पत्रे में दस दस पंक्तियाँ दोनों ओर हैं। मोटे बाँसी कागज पर लिखा गया है। पाठ विशेषत: शुद्ध है। यह प्रति संपूर्ण है और इसी का विशेष रूप से आधार लिया गया है। इस प्रति को पं० लज्जाराम मेहता के दौहित्र पं० रामजीवन नागर ने सभा को दिया है। मेहताजी ने अपनी जीवितावस्था ही में इस पुस्तक तथा गरबावली को सभा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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