Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 13
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 38
________________ ४२४ नागरीप्रचारिणी पत्रिका कैकेयी को यों समुझाया रामराज मत होय कधी। भरत बिचारा वहाँ पठाया तुज पर होगी ऐन बदी ॥४॥ क्या जानें क्या जोग सुनाया बस कर राजा बचन लिया। कैकेयी बरदान माँगकर आज तिलक मौकूफ किया ॥५॥ कैकेयी ने राम बोलाए बिदा कराए गुरु जन सों । कौशल्या परि पाय मनाई लछमन कुढ़के तन मन सों॥६॥ माँगी सीख सिया घर आये रहन कहा तब मरन लगी। सर्बस दे निकसी मग में लख रोवत नगरी रैन जगी ॥७॥ कैकेयी सब मिल समुझाई धिधिक पाई गुरुजन सों। पहिर चीर जब बाहर निकसे बिरह आग लागी तन सों ॥८॥ रथ पर बैठ चले जब बन को थावर-जंगम संग चले। नहिं कोइ वैसा रहा नगर में जिनके नैन न नीर ढले ॥६॥ राम चले बनबास रि सजनी उठ घर में क्या काम रहा। सीता राम लिए लछमन सँग मुख सों राजा जाहु कहा ॥१०॥ हा हा करत चले नर-नारी जब लग रथ की धूर दिसी । तनमनधन की सुध बिसराई बिरह-आग हिय सेल धंसी ॥११॥ पहिली रात बसे सब बन में बिना कहे चुपके सटके । उठत, राम नहिं देखत रोवत घर पावत जिय जन हुटके ॥१२॥ गंगा दरस परस हिय हरखे शृंगवेर की मँजल लिया। गुह मलाह की जात कौन सी दिल भर अपना यार किया ॥१३॥ गुह सों मिलकर नदी उतरकर भरद्वाज से जाय मिले । एक दिन रहे फलहार खाय कर चित्रकूट मों गए चले ॥१४॥ दंडक बन को से बिहारी बनचर मृग मुनि अभय दिए । कुटी बनाय भुलाय राज को अचल अचल पर बास किए ॥१५॥ ४-ऐन = ठीक। बदी =बुराई। ५-मौकूफ किया=रोक दिया । १३-मॅजल =मंजिल, पड़ाव ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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