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नागरीप्रचारिणी पत्रिका प्रतीबल पढ़ाय बन देखाय ताड़का मराय । अस्त्र ले जे निशिचर हते अपसुंदसुंदनंद ॥३२॥ टारे बिघन जगन के जंगल किए हरे । ऋषि कुल मुलक सुना चले कमान-जाग में ॥३॥ गंगा के गन अगनित बिख्यात जगत सब सुने । सागर भरे भगीरथ पितरों के भाग में ॥३४॥ विशाल पुरी पैठे जहाँ मारुत प्रगटे । गौतम शिला अहल्या तारी सोहाग में ॥३॥ गौतमकुमार शतानंद जनक ने सुना।
आए हैं ब्रह्म-ऋषी दो कुमार बाग ॥३६॥ कुशल पूछ शतानंद जनक जी कहे । दो देव कौन ल्याए महबूब जाग में ॥३०॥ खुश नैन खूब रूप सुरज चंद दिल हरे । चहिए धनुष धरें करें सीता सोहाग मों ॥३८॥ रघुबीर हैं रनधीर दो दशरथ के लाडिले। आए हैं लछन-राम काम धनुष-जाग में ॥३॥ सुन मन अनंद शतानंद राम से कहे । यह नृप सो ब्रह्म-ऋषि भए बसिष्ठ भाग मों ॥४०॥ ऋषि की कथा सुनाय शतानंद जनक चले। कल आय धनु चढ़ाइए सीता बिहाइए ॥४१॥ शंकर-कमान मान असुर-सुर-नर तरसें। रघुनाथ तुरत तोड़ा बल को सराहिए ॥४२॥ रीझे जनक तिलक किया सिय माल गरे डाल । दशरथ को दूत जाकर जलदी बोलाइए ॥४॥
३२-प्रतीबल = मंत्र हैं। ३७-महबूब =(40) प्रिय, अत्यंत सुंदर ।
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