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प्रेमरंग तथा आमासरामायण शादी की शुगल सुनकर खुश दिल से सब चले। दिन-रात चल बरात जनकपुर पोचाइए ॥४४॥ कुशध्वज बोलाय लाए युधजित अवध से आए। गुरु जनक कुल बखान कहा गोदान कराइए ॥४॥ जनवास आय कह पठाय जनक सों मिले। मंडप बनाय चारु चारों बर बोलाइए ॥४६॥ दशरथ-कुमार चार चार कुँअरि जनक की। बिहा दिया बिदा किया अवध को जाइए ॥४७॥ मग में मिले भृगुनंदन रघुनंदन घेरे। लेकर धनुष कहा महेंद्रगिर को धाइए ॥४८॥ राम राम चीन्हे कीन्हें बखान वेद। ब्राह्मन गए नृप सज भए नगर सजाइए ॥४॥ तुरत भवन आय भरत कों बिदा किए। शचिपत सों 'प्रेमरंग' सियावर रमाइए ॥५०॥ इति श्री प्राभासरामायणे बालकांडः समाप्तः ।
अयोध्याकांड ( लावनी की चाल, रागिनी बरवै) भरत शत्रूधन ले गए मामा खिजमत लछमन राम करी। राजा दशरथ को राज देन को सालगिरह सायत ठहरी ॥१॥ नहीं राम सा नर है जग म जग-मोहन औ जसधारी। मँडलेश्वर मंजूर किया तब नृप करवावत तैयारी ॥२॥ राम-राज का हुआ हँगामा घर घर खुशियाँ फैल गई। कैकेयी की लौड़ी भीड़ी देखत जल बल खाक भई ॥३॥
४४-शुगल =(१०) विषय । ३-हँगामा =समारोह।
-खिजमत = (अ. खिदमत) सेवा।
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