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नागरीप्रचारिणी पत्रिका हैं। प्रत्येक पंक्ति में प्राय: सोलह अक्षर हैं। कागज मोटा बाँसी है और लेखक ने बड़े परिश्रम से लिखा है, जिससे अक्षर एक रंग, सुडौल तथा सुंदर आए हैं। पद प्राय: छोटे छोटे ही हैं, इससे उनकी संख्या लगभग चार सौ के है। इनकी भाषा प्राय: हिंदी काव्य-परंपरा की है पर कुछ पद फारसी-मिश्रित खड़ी बोली, पंजाबी तथा गुजराती के हैं। इन सबमें श्रीकृष्णजी तथा श्रीरामचंद्र के चरित्र वर्णित हैं । प्रारंभ में चार-पाँच पदों में शिवजी, विष्णु भग. वान्, अन्य अवतार, ऋषि, भक्त आदि की स्तुति-कथा है। प्राय: सभी पद साधारण कोटि के हैं। कुछ पद विरक्ति तथा भक्ति के हैं। दो-चार उदाहरण दिए जाते हैं।
पंजाबी भाषाजांदाई जांदा सुन देवो खबरां न वेदां साँडे हाल बिरह दी । कसम तूं सानूं साँडे जाँव दी कहें दे नॉल चलें दे बिन डिठियन
रहे दे॥ 'प्रेमरंग' पाय दुश्नाम न सहेंदे ॥ खड़ो बोली हिंदी का एक उदाहरण--
आज भी हुआ है मुझे इंतजारी में फजर । कर गया करार यार शब को प्रावते फजर ॥ करता निमाज इबादत में हमेशे फजर । आज अश्क सों वजू कराया यार ने फजर ॥ जाना था उम्मेद महासिल हुई 'मैंने फजर ।
बदकरार ने किया है बेकरार दिल फजर ।। उर्दू-मिश्रित हिंदी
तदिय नरेतन दिरनांत दाँनी तरीम् तदीम् दीम् तनम् तनम्। यललिय लललूम यल लल लले ॥ध्रु०॥
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