Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 13
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 24
________________ खड़ी बोली के मनोरंजना कुछ भी ४१० नागरीप्रचारिणी पत्रिका और वह समग्र ग्रंथ पाठकों के मनोरंजनार्थ इस लेख के साथ दिया जा रहा है। खड़ी बोली हिंदी के कविता भाग की प्रगति पर यहाँ कुछ भी नहीं लिखा जा रहा है क्योंकि स्वत: उसके लिये इससे एक बड़े लेख की आवश्यकता हो जाती और जो इस लेख का ध्येय भी नहीं है। कवि-परिचय कवि ने अपने विषय में आभासरामायण तथा गरबावली में इस प्रकार लिखा है काशीवासी विप्र हो रहत राम-तट धाम । पवन-कुमार-प्रसाद सो गाय रिझावत राम ॥ अज शिव शेष न कहि सके महिमा सीता-राम । इंद्रदेव सुरदेव-सुत नागर कवि अभिराम ॥ -पा० रा०। हूँ यूँ अल्पमती नागर ज्ञाती । ब्राह्मण अमदाबादी जाती॥ काशी बसि बुद्धि में माती । करि रघुबर गुण गावा छाती ॥ सुरदेव पंड्या सुत इंद्रदेव । हनुमान-कृपा थित जो अहमेव॥ पूर्वोक्त दोनों उद्धरणों से कवि के विषय में इतना ज्ञात हो जाता है कि यद्यपि उनके पूर्वज अहमदाबाद की ओर के रहनेवाले थे पर काशी ही में प्रा बसे थे। वे नागर ब्राह्मण पंड्या सुरदेवजी के पुत्र थे और उनका स्वयं नाम इंद्रदेव था। वे रामघाट पर रहते थे और उन्हें हनुमानजी का इष्ट था। इन दोनों तथा अन्य रचनाओं में प्रेमरंग' उपनाम बराबर आया है और गरबावली के अंत में वे लिखते हैं कि हनुमान सहाय थाए जेहेन । रघुनाथ चरित्र बने तेहे ॥ गाई सभा लावू → सदा एहेने । करे थे प्रणाम प्रेमरंग वेहेने॥ वास्तव में इंद्रदेवजी प्रेमरंगजी के शिष्य थे, जिनका नाम गोविंदराम त्रिपाठी था। वे भी नागर ब्राह्मण वत्सराजजी के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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