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कवि जटमल रचित गोरा बादल की बात
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तो भी वह पद्मिनी के सतीत्व - रक्षार्थ तथा अपने राजा को छुड़ाने के उसकी माता और स्त्री ने बहुत कुछ कहा,
लिये तैयार हो गया । किंतु वह अपने संकल्प पर दृढ़ रहा गोरा और बादल ने पाँच सौ डोलियों में दो दो सशस्त्र राजपूत बिठलाकर प्रत्येक डोली को चार चार राजपूतों से उठवाया और उन्हें सुलतान के शिविर में ले जाकर अलाउद्दीन से कहलाया कि पद्मिनी को ले आए हैं। बादशाह की तरफ से कैदखाने में जाकर पद्मिनी को रत्नसिंह से मिल लेने की आज्ञा हो जाने पर सब डोलियाँ वहाँ पहुँचाई गई जहाँ रत्नसेन कैद था फिर राजा की बेड़ी काटी जाकर उसे घोड़े पर सवार करा चित्तौड़ को रवाना किया। अनंतर संकेतानुसार राजपूत डोलियों से निकल पड़े । सुलतान को यह भेद मालूम होने पर वह भी अपनी सेना को ले खड़ा हुआ और युद्ध होने लगा, जिसमें गोरा मारा गया । अंत में बादल विजयी होकर लौटा और गोरा की स्त्री बादल के मुह से युद्ध के समय के गोरा के वीरोचित कार्यों की कथा सुनकर सती हो गई । यहीं पर जटमल अपना ग्रंथ समाप्त करता है ।
ऊपर की दोनों कथाओं में इतना तो अवश्य ही ऐतिहासिक तत्त्व है कि रत्नसिंह ( रत्नसेन ) चित्तौड़ का राजा, पद्मिनी उसकी रानी, गोरा बादल उसके सरदार और अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुलतान था, जिसने पद्मिनी के लिये चित्तौड़ पर चढ़ाई की थी।
जटमल अपने विषय में लिखता है कि पठान सरदारों के मुखिए नासिर खाँ के बेटे अलीखाँन न्याजी के समय नाहर जाति के धर्मसी के पुत्र जटमल कवि ने संबला नामक गाँव में रहते हुए संवत् १६८० ( ई० स० १६२४ ) फाल्गुन सुदी १५ को ग्रंथ समाप्त किया। उसके काव्य की भाषा सरस है और उसमें राजस्थानी डिंगल भाषा के भी बहुत से शब्दों का प्रयोग हुआ है ।
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