Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 13
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 14
________________ ४०० नागरीप्रचारिणी पत्रिका यह सुनकर पद्मिनी ने उसे अपने यहाँ से निकलवा दिया। पति को कैद से छुड़ाने का संकल्प कर अपने वीर सामंत गोरा बादल से सम्मति माँगी। उस पर उन्होंने जिस भाँति सुलतान ने छल किया, उसी प्रकार उससे छल कर राजा को कैद से छुड़ाने की सलाह दी। फिर उन्होंने सोलह सौ डोलियों में पद्मिनी की सहेलियों के नाम से वीर राजपूतों को बिठलाया। अब वे पद्मिनी के स्थान पर लोहार को बैठाकर चित्तौर से दिल्ली को चले। वहाँ उन्होंने पद्मिनी के दिल्ली आने की खबर देकर सुलतान को कहलाया कि एक घड़ी के लिये उसको अपने पति से मिलकर गढ़ की कुंजियाँ सौंपने की आज्ञा दी जाय, फिर वह आपकी सेवा में उपस्थित हो जाय। सुलतान के यह स्वीकार करने पर वे राजा रत्नसेन के पास पहुंचे और अपने साथ के लोहार से उसकी बेड़ी कटवाने के बाद उसे घोड़े पर सवार करा ससैन्य नगर से बाहर निकल गए। इस पर सुलतान की सेना ने पीछा किया और गोरा लड़ता हुआ मारा गया। परंतु बादल ने राजा सहित चित्तौड़ में प्रवेश किया। यहाँ जटमल का कहना है कि सुलतान राजा को नित्य पिटवाता और कहता कि पद्मिनी को देने पर ही तुम्हारा निस्तार होगा। चित्तौड़ के निवासियों को दिखलाने के लिये वह राजा को दुर्ग के सामने ले जाकर लटकवाता; इससे वहाँ के निवासी अधीर हो गए। अंत में मार खाते खाते राजा ने भी दुखी होकर पद्मिनी को दे देना स्वीकार किया। निदान रानी को लेने के लिये खवास को भेजा, जिस पर पद्मिनी ने उस प्रस्ताव को अस्वीकार किया; किंतु मंत्रियों ने राजा को बंदीगृह से मुक्त करने की इच्छा से पद्मिनी को सुलतान को सौंपने का विचार कर लिया। तब वह अपने सतीत्व के रक्षार्थ बीड़ा लेकर बादल के पास गई, जिसने उसको गोरा के पास जाकर उसे भी उद्यत करने को कहा। यद्यपि बादल छोटी अवस्था का था Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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