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"एवं मूलगुण- बृहत्प्रत्याख्यान- लघुप्रत्याख्यान-समाचार-पिण्डशुद्धयावश्यक नियुक्त्यनगार-भावनानुप्रेक्षा-समाचार-पर्याप्ति-शीलगुणा इत्यन्तर्गत - द्वादशाधिकारस्य मूलाचारस्य सद्वृत्तिः श्रोतृजनान्तर्गत रागद्वेषमोह क्रोधादिदुर्भाव कलंकपंकनिरवशेषं निराकृत्य पुनस्तदज्ञानविच्छित्ति सज्ज्ञानोत्पत्तिं प्रतिसमयमसंख्यातगुणश्रेणिनिर्जरणादिकार्यं कुर्वन्ती 'मुनिजनचिन्तामणिसंज्ञयं' परिसमाप्ता ।
मर्यादया ये विनीताः विशुद्धभावाः सन्तः पठन्ति पाठयन्ति, भावयन्ति च चित्ते ते खलु परमसुखं प्राप्नुवन्ति । ये पुनः पूर्वोक्तमर्यादामतिक्रम्य पठन्ति पाठयन्ति ...... भवन्तो निरन्तरमनन्तसंसारं भ्रमन्ति यतस्तत एव परमदिव्येयं भवन्ती — मुनिजनचिन्तामणिर्या सा श्रोतृचित्तप्रकाशिता ।
मूलाचारस्य सद्वृत्तिरिष्टसिद्धि करोतु नः ॥
इसका संक्षिप्त अभिप्राय यह है
मूलगुणादि द्वादश अधिकार युक्त मूलाचार की मुनिजन चिंतामणि नामक टीका समाप्त हुई । श्रोताओं को राग, द्वेषादि कलंकों को दूर करनेवाली और अज्ञान को नष्ट करने वाली, ज्ञान को उत्पन्न करनेवाली और प्रतिसमय असंख्यात गुणश्रेणी से कर्म-निर्जरा आदि कार्य करनेवाली यह 'मुनिजनचितामणि' नाम की टीका समाप्त हुई । जो अगम की मर्यादा को पालते हैं, विनीत और विशुद्ध भाव को धारण करते हैं, वे भव्य इस टीका का पठन करते हैं, और पढ़ाते हैं उनको परमसुख प्राप्त होता है । परन्तु जो मर्यादा का उलंघन कर पढ़ते हैंपढ़ाते हैं, मन में विचारते हैं, वे अनन्त संसार में भ्रमण करते हैं ।
यह मुनिजन चिन्तामणि टीका श्रोताओं के चित्त को प्रकाशित करती है, मूलाचार की यह सद्वृत्ति हमारी इष्ट सिद्धि करे ।
इस विवेचन से यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि यह मूलाचार ग्रन्थ श्री कुन्दकुन्ददेव के द्वारा रचित है ।
संपूर्ण ग्रन्थ बारह अधिकारों में विभाजित है । श्री वट्टकेर आचार्य ने उन अधिकारों के नाम क्रम से दिये हैं- १. मूलगुण, २. बृहत्प्रत्याख्यान संस्तरस्तव, ३ . संक्षेप-प्रत्याख्यान, ४. सामाचार, ५. पंचाचार, ६. पिण्डशुद्धि, ७. षडावश्यक, ८. द्वादशानुप्रेक्षा, ६. अनगारभावना, १०. समयसार, ११. शीलगुण और १२. पर्याप्ति ।
प्रथम अधिकार में कुल ३६ गाथा हैं। आगे क्रम से ७१, १४, ७६, २२२, ८३, १ε३, ७६, १२४, १२५, २६ और २०६ हैं । इस तरह कुल गाथायें १२५२ हैं ।
श्री मेघचन्द्राचार्य ने भी ये ही १२ अधिकार माने हैं । अन्तर इतना ही है कि उसमें आठवाँ अधिकार अनगार भावना है और नवम द्वादशानुप्रेक्षा । ऐसे ही ११वां अधिकार पर्याप्ति है । पुनः १२वें में शीलगुण को लिया है । इसमें गाथाओं की संख्या क्रम से ४५, १०२, १३, ७७, २५१, ७८, २१८,१२८, ७५, १६०, २३७ और २७ हैं।
२० / मूलाचार
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