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श्री राजकुमारसिंहजी कलकत्ता के पत्र
( . १ ) श्रीगुरुभ्योनमः
(नोट - बाबू राजकुमारसिंहजी के पत्र जो उन्होने पूना में स्थापित भांडारकर ओरियन्टल रिसर्च इस्टीट्यूट मे जैन साहित्य के अध्ययन सशोधन प्रकाशन आदि कामो के लिये इंस्टीट्यूट के विशिष्ठ कार्य - कर्ताओ की प्रार्थना एवं निवेदन आदि को ध्यान में रखकर दिये ।
मैंने इंस्टीट्यूट को जैन समाज की ओर से सर्वप्रथम २५००० ) रु० - का आर्थिक सहयोग दिलाने का सकल्प किया और तद्नुसार मेरे परिचय मे आने वाले कुछ उदारचेता जैन गृहिस्थो को प्रेरणा देकर रुपया जमा कराने का प्रारम्भ किया उसमे प्रारम्भ मे बम्बई के कुछ धनिक गृहस्थ जो मेरे विचारो और कार्य से विशेष परिचित थे उन्होने एक-एक हजार रुपयो का दान देना स्वीकार किया और इस प्रकार उनको मैने भाडारकर रिचर्स इंस्टीट्यूट के पेटून बनाने का प्रबन्ध किया ।
यह सामाचार पूना और बम्बई के पत्रो मे प्रकट हुए तो कलकत्ता निवासी बाबू राजकुमार सिंह जी जो उस समय सारे जैन श्वेताम्बर समाज के एक मुख्य व्यक्ति और सम्मानित नेता थे उन्होने पढा और मेरे द्वारा पूना के एक प्रसिद्ध सार्वजनिक एव अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के योग्य रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा जैन साहित्य के प्रकाशन निमित्त जो कार्यारंभ किया गया उसे जानकर उनको बड़ा हर्ष हुआ और उस विषय मे उन्होने जो सबसे पहला पत्र लिखा वह निम्न प्रकार है - )
स्वस्ती श्री पार्श्व जिन प्रणम्य पूना नगर महा शुभ स्थाने अनेक गुणालंकृत पूज्यपाद गुरुवर्य श्री श्री १००८ श्री जिन विजयजी