Book Title: Mere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 191
________________ जर्मनी निवासी, राष्ट्रभक्त, भारतीय संस्कृति के . . . . अनन्य उपासक ___ स्व० श्री ताराचन्द राय के कुछ पत्र ता० २६-७-२६ Neuendorf Plogshagen 2 Hiddensee Bei-Schlieker प्रिय मुनि जी, यहाँ शोर है न धूल है। यहाँ सव ब्रह्मानन्द का मूल है । यहाँ सुख का ही रूल है। दुख केवल भूल है। विचरना असूल है। मुनि जी सच. कहू तो मेरी लेखनी मे सामर्थ्य नही कि यहां की खूबियो का वर्णन कर सक। मुझे.तो हिड्डिन अनिर्वचनीय आनन्द का द्वीप प्रतीत होता है। पातदिन मैं आपको याद करता है। यदि हो सके तो अवश्य आइये । झाउ डाक्टर जी वार वार कहती है । प्रणाम्। आपका शुभ-चिन्तक ताराचन्द राय (२) २५-६-३० प्रय मित्र मुनि जी, आपका Congress Free Hospital से लिखा हुआ पत्र मिला। इदय को दुख और हर्ष दोनो हुए। दुख इस कारण की आपको चोट पाई और हर्ष इसलिये कि आपने भारत माता पर अपने आपको निछावर कर देने के प्रयत्न में यह इनाम पाया। ईश्वर आपको जल्दी

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