Book Title: Mere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 198
________________ १७० मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र 25-11-30 मेरे प्यारे जिनविजयजी मै यहाँ सेठ रेवाशंकरजी के मकान पर ठहरा हुआ हूँ। आप इस पत्र को पाते ही मुझसे मिलने आवें। जरूरी काम है। बाकी मिलने पर । मेरे घुटने में चोट के कारण मै वहाँ नहीं पहुँच सकता। सरदार बल्लभ भाई तथा श्री महादेव देसाईजी को मेरा सप्रेम बन्देमात्रम् कहें। सस्नेह सत्यदेव Muni Jinvijay Gujarat Vidyapeeth Ahmedabad, ,B B. & C.I. Rly. (७) c/o American Express Co., Bombay 31.12.30 प्रिय मुनिजिनविजयजी, __३० अक्टुवर का पत्र लिखा हुआ हरमीनस का मुझे , कल मिला। 'उसमें ६००-८०० मार्क के विश्वविद्यालय से खर्च की चर्चा है। ताकि डिप्लोमा मिल सके। क्या आपको भी कोई पत्र आया है ? आपने क्या किया है ? मुझे दुख है कि यह पत्र बहुत देर से-D.L.O. की मार खाता हुआ यहाँ मिला। क्या उन्होने विश्वविद्यालय में पढ़ना शुरू कर दिया ? या रुपये के कारण काम रुक गया है। उनके पास पैसा जल्द खर्च हो जायगा इस लिये कोई स्कीम बनाकर काम करें। मैंने उत्तर लिख दिया है । आपका Muni Jin Vijayji Shantı Niketan Bolpur, Bengal

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