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मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र
(१०) . , सत्य ज्ञान निकेतन ज्वालापुर
११-७-४५ 'प्यारे मित्र जिन विजयजी
सप्रेम वंदे मातरम् उदयपुर के हिन्दी साहित्य सम्मेलन के आप स्वागताध्यक्ष चुने । गए। यह जानकर मुझे बड़ासंतोष हुआ। और मैं आपके सम्मेलन की हृदय से सफलता चाहता हूँ। मेरी ओर से आप सम्मेलन प्रतिनिधी को कह दीजिए कि सम्मेलन सारे भारत वर्ष में राष्ट्र लिपी देव नागरी के शुद्ध स्वरूप का प्रचारक है। उसकी यह प्रतिज्ञा है कि सव प्रान्तीय लिपियाँ देवनागरी अक्षरों में लिखी जाय । ऐसा भगीरथ प्रयत्न हमें करना है। संस्कृत निष्ठ हिन्दी भाषा ही बहुसंख्यक भारतीयों की राष्ट्र भाषा होगी। हिन्दुस्तानी की रचना करना समय और शक्ति का दुपयोग करना है। जो शब्द हिन्दी भाषा में घरेलू से बन गए हैं वे उसका अंग बने रहेंगे लेकिन हिन्दी भाषा को बिगाड़ कर हिन्दुस्तानी का रूप देना शुद्ध राष्ट्रीयता के साथ विश्वास घात करना है।
; मंगलाभिलाषी
स्वामी सत्यदेव परिव्राजकाचार्य श्रीमुनि जिन विजयजी स्वागताध्यक्ष हिन्दी साहित्य सम्मेलन Udaipar Mewar State. .