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कलकत्ता निवासी बाबू श्री पूरणचन्दजी नाहर के पा
48, Indian Mirror Strect
Calcutta 11-4-1919
P. C. Nahar M.A.B L. Vakil High Court Phone 2551
पूज्यवर,
आपका कृपा पत्र यथा समय प्राप्त हुआ। 'द्रोपदी स्वयंवर' की ‘एक कॉपी भी मिली है। उसके लिये धन्यवाद के साथ निवेदन है कि उसकी प्रस्तावनादि बहुत ही उपयोगी हुई है और ऐसी सुन्दर और दुर्लभ प्राचीन जैन पुस्तकें प्रकाशित होने की बहुत आवश्यकता है । आप वर्तमान में विस्तार पूर्वक वहाँ के जैन ग्रन्थों का केटलाग बना रहे हैं। 'मुझे पूरी आशा है कि यह पुस्तक छपकर तैयार होने से बहुत ही उपयोगी साबित होगी।
आगे जैन लेख सग्रह के विषय मे आपने जो सूचना दी है वह आपके पूर्व पत्र मे भी थी । जहाँ तक मुझे स्मरण है उत्तर में आपको खुलासा निवेदन किया गया था। इस लेख संग्रह का दूसरा भाग भी प्रकाशित करने की अभिलाषा है । समयाभाव से आपकी तरह विस्तीर्ण रूप से लेखो का अवलोकन नही कर सकूगा। केवल अपने प्राचीन