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बाबू पूरणचन्द जी नाहर के पत्र
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पुनः संचालन करने का विचार किया है। सो आपके योग्य ही हुआ है। इसका पहला अंक फाल्गुन मे निकलेगा और मुझको इसके लिये लेख भेजने को लिखा सो ज्ञात हुआ। मेरे नैत्र मे इधर वरावर तकलीफ रहती है। इससे लिखने पढने का काम विशेष नही हो सकता है । कुछ स्वास्थ्य ठीक होने पर मुझ से जहाँ तक बनेगा मैं हर तरह की सहायता देता रहूँगा। ___ आगे जीतकल्प सूत्र की एक प्रति जो आपकी तरफ से भेंट स्वरूप भेजी गई वह यथा समय पहुँच गई है। मैंने धन्यवाद के साथ इसको स्वीकार किया और यह मेरे पुस्तकालय मे सुरक्षित रहेगी। लिखना वाहुल्य है कि आप ऐसे विद्वान् और सुयोग्य सपादक की कृति में त्रुटि रहने की संभावना नही रहती है। इस सूत्र का सपादन कार्य भी सर्व प्रकार से सराहनीय और उपयोगी हुआ है। अपने समस्त आगमो के ऐसे ही सर्वांग सुन्दर सस्करण की परमावश्यकता है। ज्यादा शुभ स० १९८३ मि० फाल्गुन वि० ५
भवदीय दः पूरणचन्द नाहर
(२६)
P. C. Nahar M. A, B, L. Vakıl High Court Phone Cal. 2551
48, Indian Mirror Street
Calcutta 21-2-1927
अपरंच कृपा पत्र मिला उसका उत्तर इसके साथ भेजते हैं । आपको खानगी तौर में यह एक और पत्र देने का साहम किया है सो क्षमा कीजिएगा। इधर मे आपसे जब गत वर्ष मे मिलना हुआ था, तद्पश्चात् आज तक घटनाचक्र से मेरे पर ऐसा चिन्ता जाल बढ़ रहा है कि मुझे बहुत ही विकलता रहती है। इधर सामाजिक और घरेलू विपयो मे जो मेरी कुछ समय और शक्ति लगती है, आपसे छिपे