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मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र
(२)
फर्नहिल नीलगिरी
ताः २-२-१९२४ श्रीयुत मुनि महाराजजी। ___संभव है कि आप मुझे भूले नही होंगे । दो साल से अधिक अर्सा हुआ आपके दर्शन नालंदा में हुए थे। एक पत्र मैंने आपको भेजा था। परन्तु उत्तर नही मिला । अतः चुप रहा अव मुनि श्री वल्लभविजयजी के कथनानुसार फिर लिखता हूँ संभव है उन्होंने भी आपको लिखा हो।
मेरा विचार है कि प्रभावक चरित्र का शुद्धि पत्र छाप दिया जाय और प्रभावक चरित्र से जो जो एतिहासिक वातें निकल सकती हैं उनकी छान बीन करके इंग्लिश एवं हिन्दी मे भूमिका या दूसरा भाग इस रूप में छाप दिया जाय चाहे निर्णय सागर में चाहे अन्यत्र, जैसा हो, इसमें आपकी सहायता की आवश्यकता है। यदि कृपा हो तो यह कार्य हो जावे । यदि मैं मुनि श्री वल्लभजी के पास कहीं होता तो संभवतया यह कार्य शीघ्र हो जाता, अब बहुत दूर बैठा हूँ अतः डाक द्वारा ही सब कुछ होगा। यहाँ कोई लेखक या पडित भी नहीं है। यत्ल कर रहा हूँ कोई योग्य लेखक आ जाय तो ठीक हो।
(अहिंसा तत्त्व ) की एक प्रति मिल गई है। जैसा मैंने प्रूफ देख कर ही लिख दिया था। बहुत ठीक उत्तर दिया गया है।
भवदीय हीरानन्द शास्त्री
पता-नाम
फर्नहिल नीलगिरीज (मद्रास प्रान्त)
(३)
बड़ौदा
२३-५-३४ श्री विद्वद्व र मुनि जी
अभिवादनाद्यनन्तरकृपा पत्र मिला मैंने तीनों ग्रन्थ पढ़ डाले । प्रसन्न हुआ। आपने