Book Title: Mere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 180
________________ १५२ मेरे दिवंगत मित्रो के कुछ पत्र Camp PATAN 13-3-38 श्री मुनि प्रवराः बहुत समय हुआ न तो आपके दर्शन हुए न पत्र व्यवहार। जहां तक मुझे स्मरण है 'चुप्प' आपकी ओर से है। एक दिन अहमदाबाद देर तक ठहरना पड़ा यत्न किया आपसे मिलू मगर आपके स्थान पर, जहा मैं आपसे मिलता था पाप नही थे। पता लगा कि आपने कही दूर अलग मकान बना लिया है। कहा ? वह ज्ञात नही । कह नही संकता यह पत्र आपको मिले या न मिले।। ____ मैं परसो यहा से लौटू गा। ११ बजे के करीब अहमदावाद आ जाऊगा । यदि हो सके तो किसी आदमी को भेज दें उसके साथ आ जाऊंगा। १ बजे वाली गाडी मे बडौदा लौट जाऊंगा मुझे इस समय विशेप कार्य है । मैं विज्ञप्ति पत्रो पर एक लेख लिखना चाहता हूँ यदि आप सहायता करें तो कृपा हो । मेहता जी ने कहा है । यहां पुण्य विजय जी ने भी सूचित किया है। आपके पास बहुत सामग्री है। उन्होने विज्ञप्ति त्रीवेणी की पुस्तक भी पढने को दी। उसकी ओर प्रति शायद न मिले आपने ही छपवाया है । यदि कृपा होतो मैं आऊं। यह पत्र यदि समय पर न मिले तो बडौदा उत्तर दें। इन छुट्टीयो में वही रहूंगा। पता मेरा नाम और अलकापुरी बडौदा या केवल नाम ही। श्री प्रवर्तक जी मुनि जी अच्छे है। देख नही सके नही तो उनसे सहायता मिलती। कहते हैं फिर सामग्री इकट्ठा करके देंगे। आशा है आप सर्वथा प्रसन्न है । यहा कभी पधारें तो देखें कितना खोद काम कर डाला है। अगर आप अहमदावाद हो तो मैं बड़ौदा से भी आ सकता हूँ। ठीक ठीक मकान का पता दें। विनीत हीरानद शास्त्री

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