Book Title: Mere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 182
________________ १५४ मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र द्योतक है । मैं जब कभी आपसे मिला हू आपके सौजन्य से एवं पाण्डित्य से प्रभावित हुआ हूँ । मैं पाटण जाता हुआ और वहाँ से आता हुया ग्रापसे अवश्य मिला करूंगा । अहमदाबाद मे देर तक ठहरना होता है । विना किसी क्लेश के आ सकता हूँ | जाता हुआ प्रायः वहाँ एक बजे आता हूँ । चार तीस पर चलता हूँ एव लोटता भी दस साढ़े दस । वहा आकर १- ४० पर चला करता हूँ । टेक्सी ली और आपके पास पहुँचा । मैं आपको सूचना दूँगा पहले तो द्वारका जाना है फिर पाटण । I विज्ञप्ति पत्रो पर लेख लिख कर मैंने आज भेज ही दिया है । पुण्यविजयजी को लिखा था। प्रवर्तक महाराज के सग्रह मे से पत्र भेजें । उन्होंने उत्तर ही नही दिया । अब और क्या प्रतीक्षा करनी है । जो सामग्री मेरे पास थी उसी पर लिख दिया है । जब आपसे मिलूँगा तो आपको दिखलाऊंगा और आप वाला पत्र भी देखूंगा । यदि पाटण के सहस्र लिंग तालाब का कही वर्णन आता हो तो देख रक्खे | योग्य सेवा हो तो लिखें । (5) विनीत हीरानन्द शास्त्री PATAN T: 17-4-38 श्री मुनि जिनविजयजी महाराज, आशा है आप प्रसन्न हैं और अहमदावाद ही विराज रहे हैं । मैं २० तारीख को सवा दस या साढ़े दस बजे अहमदाबाद श्रा जाऊँगा । आप किसी को स्टेशन पर भेज दें। उसके साथ आ जाऊँगा । मिल के एक बजे की गाड़ी में लोटू गा । दर्शनाfभापी हीरानन्द शास्त्री

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