Book Title: Mere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 179
________________ प्रख्यात एपिग्राफिस्ट डा० हीरानन्द शास्त्री के पत्र १५१ सम्पादन में पूरा परिश्रम लिया है। यही तो पुण्य है । प्रबन्ध चिन्तामणी में आपने जो " प्रस्तुत आवृत्ति की जन्म कथा", लिखी है उसे मैंने बडी रुचि से पढ़ा। प्रवत्तंक श्री कान्तिविजयजी महाराज के लिये जो कुछ लिखा, ठीक है । मेरी उनमें बहुत श्रद्धा है । यह तो श्री चतुर्विजयजी और पुण्यविजय जी त्रिरत्न हैं । मैं अपनी राय इसके साथ भेजता हूँ । यदि और कहें तो और लिख दूं । आज कल गर्मी बहुत है नीलगिरी पर रहने के कारण और अधिक प्रतीत होती है । अहमदाबाद की ओर आया तो अवश्य मिलूंगा । कभी २ कुशल पत्र भेजा करें | सबको यथा योग्य | (४) आपका विनीत हीरानंद शास्त्री Camp Kalol 12-10-36 श्रीयुत मुनि महाराज । आपका कृपा पत्र मिला, धन्यवाद । मुझे ज्ञात नही था कि आपके पास और भी सामग्री थी अच्छा फिर सही । मैं शायद लौटता हुआ दर्शन कर सकूं। सायंकाल को मेहसाना जाऊंगा वहा दो तीन दिन ठहरूं । आपके निमत्रण का अवश्य ही उपयोग करूंगा । जब कभी हो, सम्भव होने पर सीधा आपके पास चला आऊंगा कोई संकोच नही । कृपाकांक्षी हीरानंद शास्त्री

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