________________
श्री काशीप्रसाद जायसवाल के पत्र
१३५
()
पटना
अगहन-७६ मान्य मुनिजी को प्रणाम,
कृपा पत्र आया। हम छाप और लेख जल्द भेजेंगे। जो जो बातें आपने लिखी हैं, उन सब पर अच्छी तरह ध्यान दिया है । उपादियाति के वाद विराम (1) है, इससे कलारणानि छिन्न, दूर पड़ जाता है। उपर के शेप योवना भिजयो" इसमे शेप योवन पर ध्यान दीजियेगा। या तो राजा फकीर हो गया था या मर गया था। जब लेख देखा गया फिर देखिये कि क्षेत्रिय तापस खारवेल के समय में अनेक थे ।
उसी के लेख से यह विदित है, फिर उसके सन्यस्त होने में क्या आशंका हो सकती है ? उडीसे की खबर जैन साहित्य को कम थी इसी से खारवेल का नाम तक नही है । फिर उसके भिक्षु होने का हाल क्यो कर जैन साहित्य में मिले ।
तारिय% ति, इसमे यह बखेडा है कि त्रि और कही बराबर "ति" के रूप मे आया है। आपकी शकाओ के कारण मैंने विशेषत. विचार किया जिससे उपकार हुआ।
कल्कि पर नोट इण्डीयन एन्टीक्वेरी में छप रहा है। देखियेगा। आपने शायद त्रिलोक सार की बात लिखी है यह मुझे पीछे से मिला पर वह ग्रथ पीछे का है। (१00 A. D ) उसमे चतुर्मुख लिखा है. पर पुराणों में विष्णुयश ठीक है। चतुर्मुख उसके अवतार कथा का द्योतक हो सकता है या उसका यह मूल नाम रहा हो पर त्रिलोक में उसे पटने का राजा लिखा है । यह पुराणो के विरुद्ध है।
मैंने आपकी विज्ञप्ति त्रिवेणी में उल्लिखित राजा (कांगडा वाले) का पता लगाया है। समालोचना मे लिख दिया है।
आपका का० प्र जायसवाल