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मेरे दिवगत मित्रो के कुछ पत्र
Patna
अगहन वद १ मान्यवर,
कृपा पत्र और यगोधर चरित के लिए अनेक धन्यवाद । हीरा लालजी शाह के विचार अभी कच्चे हैं। जी लगाते हैं पर आदमी नये मालूम होते है।
में लेख मे लगा हूँ। आपने जो कुछ लिग्बा है उस पर विचार कर रहा हूँ। फिर एक बार उड़ीसा जाना होगा।
यह निश्चय जान पडता है कि खारवेल जैन था । कालिगजिन चाहे जो हो, पार्श्वनाथ या दूसरे, 'नदराज नित' स्पष्ट है । पानतरिया सबस सतेही मुरिय काले वोछिने यह Datc जान पड़ता है।
जो वाक्य लिखा था वह अब इस तरह निश्चित हुआ है । आपका पत्र पाकर उसे फिर देखा। ___"कुमारी पवते परिणय सतेहि काव्य निमिदियाय यापन वकेहि
राणभितिनि चिनछतानी बोसामितानि पूजानि रित गविमा खारवेल मिरिना जीवदेहं वहुकाल (म) राग्विता"।
अर्थ-"१०० वार प्रदक्षिणा पूर्वक अरहत की शरीर निपीदी (समाधि) की यापना वायियो को राजभृति और (चल छादनीया) रेशमी कपडे (चीन) दिये जाने की आना दी।
श्री खारवेल ने वे दूध की पूज्य गायो के जीव देह की रक्षा बहुत काल के लिये की (पीजरापोल)।
यापनावादी कौन थे और गाब हए ? यापज्ञापक का कोई अर्थ जैन धर्म की दृष्टि से हो सकता है।
आपका कागी प्रसाद जायसवाल