________________
बावू श्री पूरणचन्द जी नाहर के पत्र
११
का निवेदन किया था और वही पर छपाई का काम भी करा लेने का था । कारण वहां होने से आपको प्रूफ वगैरह देखने में सुगमता रहेगी। आपने इन सब बातो को पंसद की थी। और साथ में मेरे यहाँ से कई पट्टावली भी ले गये थे। अस्तु वे पट्टावली मुझे वापिस मिल गई है। मैने कई जगह यह आपकी खरतर गच्छ पट्टावली शीघ्र बाहर होने की सूचना देखी है और शायद वह यही है यदि अवकाश मिले तो दो शब्द लिखकर शीघ्र भेज दें। अन्यथा किसी प्रकार अब अधिक न रखकर प्रकाशित कराने का प्रबन्ध करना उचित होगा।
आगे मेरी स्त्री जो वर्षो से पीडित थी वह कुछ अच्छी है। मेरे नेत्र मे शस्त्र क्रिया से कुछ रोशनी आई है । नहीं तो अकथनीय कष्ट था। शायद एक दो मास के पश्चात् पठन पाठन भी शक्य होगा। ऐसी डाक्टरो की राय है। आपका शीघ्र इधर आना सभव नही ऐसा पंडित सा० से मालूम हुआ था परन्तु आपको इधर आना है तो बड़े हरे की वात है मै तो आपका पुराना भक्त हूँ तथा स्वय भी पुराना रद्दी होता जाता हूँ तो भी यथाशक्ति सेवा से विमुख नही हूँ। ससार अनन्त है, कार्य क्षेत्र अपरिमित है। कर्त्तव्य असख्य है । ऐसी दशा में जो क्षण मात्र भी धर्म समाज और मनुष्य के हित की अपने नश्वर शरीर से वन पड़े वही सफल है। आपको अधिक लिखना धृष्टना और अगाध समुद्र मे एक बूंद वारिवत है। अधिक क्या लिखे कृपा रखें । शरीर का यत्न रखे । ज्यादा शुभ ।
विनयावनत
पूरण चन्द नाहर ___ (३३) P. C. Naar M.A. B. L. 48 Indian Mirror Street Vakil High Court
Calcutta 4. 3. 1931 Phone cal. 2551 .
'अशेष गुणालंकृत बहुमानास्पद पूज्यवर मुनि जिनविजयजी महाराज की सेवा मे