Book Title: Mere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 145
________________ पं. श्री गौरीशकर, हीराचन्दजी श्रोझा के पत्र राजपूताने का इतिहास, जिल्द ३, भाग २ (बांसवाडा का इतिहास ) शेष सब कुशल है । योग्य सेवा लिखाते रहे । प्राजकल दो तीन दिन से यहाँ थोडी-थोडी वर्षा हो रही है । ११७ (१६) म० म० रायबहादुर डॉ० गो० ही ० ओझा, D. litt. कृपाकांक्षी गो० ही ० ओझा अजमेर १६-१-३८ पूज्यपाद आचार्यजी महाराज श्री जिनविजयजी महाराज के चरण सरोज मे गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का सविनय प्रणाम ! अपरच ! गुजरात वर्नाक्यूलर सोसायटी अहमदाबाद ने "मिराते अहमदी" की पहली जिल्द का गुजराती अनुवाद ई. स. १९१३ मे और उसकी पूरवणी (परिशिष्ठ) ई. स. १६१६ में प्रकाशित की थी। ये दोनों ग्रन्थ पठान निजाम खान नूरखान वकील ने गुजराती में तैयार किये थे । राजपूताने के इतिहास के लिये मुझे इन दोनो पुस्तको को बढ़ी आवश्यकता है । गत वर्ष मैने गुजरात वर्नाक्यूलर सोसायटी के असिस्टेन्ट सेक्रेट्री हीरालाल त्रिभुवनदास पारेख को लिखा था और यहां तक लिखा था कि यदि दस गुने मूल्य से भी ये पुस्तकें मिल सके तो आप खरीदकर भेज दो, परन्तु मिल नही सकी । अब मुझे उन दोनो पुस्तको की आवश्यकता हुई है इसलिए आपसे प्रार्थना है कि उपर्युक्त दोनो पुस्तकें कही से कीमत पर मिल सकें तब तो वैसे ( मूल्य चाहे जो लगे ) भिजवाने की कृपा करें । कदाचित मूल्य पर न मिल सके तो आप कृपा कर अपने किसी इष्ट मित्र से उधार लेकर १५ दिन के लिए रजिस्टर्ड पार्सल से भिजवा देवें तो मैं उन मे से अपना आवश्यक अंश उदृतकर उन्हे रजिस्ट्री पार्सल से लौटा दूँगा । यदि आपके इष्टमित्रों से भी न मिले तो गुजरात वर्नाक्यूलर सोसायटी के असिस्टेण्ट सेक्रेट्री मि. पारेख से कहकर वे दोनो पुस्तकें दो सप्ताह के लिये रजिस्टर

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