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मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र
खोई हुई श्रृंखला की बहुत सी खोई हुई कड़ियां फिर जुड़ गई है । इस अगाध श्रम के लिये आपकी जितनी प्रशंसा की जाय थोड़ी है ।
सिधी बहादुर सिंह जी ने यह ग्रन्थ माला आप जैसे पुरातत्व वेत्ता और प्रसिद्ध विद्वान के हाथ से प्रकाशित करा कर अपने द्रव्य का सद्व्यय किया हैं और अपने स्वर्गस्थ पिता की यशः पत्ताका भू मंडल में फहराई है । धन्य हैं ऐसे पितृभक्त और इतिहास के उद्धारक, जिन्होने नष्ट इतिहास को उद्धार करने का असाधारण प्रयास किया है । जब सिंधी जैन ग्रन्थ माला के अन्य ग्रथ, जो मुद्रणावस्था मे है, प्रकाशित होंगे तव प्रत्येक पुरातत्ववेत्ता, इतिहास प्रेमी और जैन धर्मावलम्बी, महापुरुषों के चरित्रो की खोज करने वाले आपके और सिधी जी के बहुत कृतज्ञ होगे । ग्रंथ माला की प्रत्येक पुस्तक वास्तव मे रत्न रूप है । वृद्धावस्था के कारण इन दिनों मेरा स्वास्थ्य ठीक नही रहता तो भी इतिहास का काम थोडा बहुत चल रहा है । मार्च के अन्त के आसपास तक मेरे इतिहास के दो खण्ड आप की सेवा मे भेंट कर सकूंगा । आशा है अब आपका स्वास्थ्य अच्छा होगा ।
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आपका चरण सेवक गोरी शकर हीरा चन्द ओझा
अजमेर
म० म० रायबहादुर गौ० ही ० ओझा
१० सितम्बर १९३७
श्रद्धेय आचार्य महाराज श्री जिन विजयजी की पवित्र सेवा में गौरीशकर हीराचन्द ओझा की वन्दना निवेदन हो अपरंच || आज आपकी सेवा मे रेल्वे पार्सल से नीचे लिखी पुस्तकें भेंट भेजी गई हैं रेलवे रसीद 40A/24 89959 की इस पत्र के साथ भेजता हूँ । श्राशा है पुस्तको की पार्सल आप पार्सल प्राफिस से मँगवा लेंगे ।
राजपूताने का इतिहास, जिल्द १
राजपूताने का इतिहास, जिल्द ३, भाग १ (डूंगरपुर का इतिहास )