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मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र
मेरा स्वास्थ्य करीब एक महीने से खराब है और अब कुछ ठीक होता जा रहा है। थोड़ा-सा श्रम करने पर भी श्वास चढ जाता है और खासी आ जाती है स्वास्थ्य ठीक होते ही पहला काम यही हाथ मे लेऊँगा और आप की आज्ञा का पालन करूंगा । उसकी छाप मेरे पास है जो ब्लाक वनवाने के लिये आपके पास भेज दूगा। इस ताम्रपत्र ने आबू के परमारो के इतिहास की सारी उलझन सुलझा दी है।
___"भारतीय विद्या" की दूसरी में नही तो तीसरी में जहां स्थान मिल सके मेरा लेख प्रकाशित कर देवें। ____ कुमारपाल का एक ताम्रपत्र मैंने बडौदे की मोरियन्टल कान्फ्रेन्स की रिपोर्ट में प्रकाशित किया है। शायद उसी की छाप आपके पास भेजी होगी।
सिन्धी ग्रन्थमाला के लिये आपने लिख ही दिया है जो मिल ही जायगी। __ जयचन्द्रजी विद्यालकार कहाँ है यदि उनका पता मालूम हो तो लिखिएगा ।
राजपूताने के इतिहास की पहली जिल्द का द्वितीय सस्करण (मेवाड के इतिहास को छोडकर) और जोधपुर गज्य के इतिहास का पहला खण्ड आपके लिये एक ये ही तीनो पुस्तके "भारतीय विद्या" के लिये ६ जिल्दे आपकी सेवा मे रेल्वे पार्सल से भेजी गई है जिनकी Pard रेल्वे रसीद 20 66349 की इस पत्र के साथ है पुस्तकें सम्भाल कर पहुँच लिम्बने की कृपा करें। आप से यह भी निवेदन है कि इन तीनो पुस्तको को पढकर इनकी समालोचना भारतीय विद्या मे भी प्रकाशित करावें।
वह दिन बड़े सौभाग्य का होगा जिस दिन आपके दर्शनो का लाभ प्राप्त होगा अब मेरी शारीरिक शक्ति ऐसी नही है कि बम्बई आकर आपके दर्शन कर सकू।