Book Title: Mere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 158
________________ १३० मेरे दिवगत मित्रो के कुछ पत्र __(५) श्री मुनिजी को प्रणाम ! ____ मैंने मि० R. D. बनर्जी को आज लिखा है । सोमदेव के Date के लिए बहुत धन्यवाद । शक काल और गुप्तकाल एक होना तो असंभव सा जान पडता है। मैं अगले अगस्त या सितम्बर मे पूना बम्बई की ओर पाऊँगा तब दर्शन करूंगा। __आप ओझा जी को मेरा मत बता दीजिएगा। खारवेल २) रु० मे रिसर्च सोसायटी के आफिस से मिल सकता है। __ आप ही के लिखने से कि गुफा का उल्लेख होगा, मैंने (कंदराइय) कान्तारिष पढा, जिसे सबने पसन्द किया। मैने राजनीति पर एक ग्रन्थ लिखा है । छप रहा है । छपने पर भेजू गा। आपका का०प्र० जायसवाल Patna 5-6-18 आपने गत अक इण्डियन एण्टीक्वेरी मे मेरी की हुई आलोचना आपकी त्रिवेणी की देखी होगी ? बहुत ही अच्छा विचार है कि काल विपयक सब सामान जैन साहित्य में एकत्र कर दिया जाय । देश-देश में भगवान महावीर स्वामी का समय क्या-क्या माना जाता है वह भी लिख दीजिएगा। काल विपयक इण्डीयन एन्टीक्वेरी की पुरानी जिल्द (के. वी. पाठक होरनल आदि के लेख पट्टावली इत्यादि) देख लेना चाहिए । फई एक का रेफरन्स मैंने अपने शिशु नाग में दिया है। मेरी समझ में सिर्फ जैन क्रोनोलॉजी, मैंने दिखलाया, ठीक है ।

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