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पं. श्री गौरीशंकर, हीराचन्दजी ओझा के पत्र
साहित्य सेवा भी नही हो सकती तो भी यथा माध्य कुछ कुछ किया करता हूँ।
“सिन्धी जैन ग्रन्थ माला" के पाच ग्रन्थ मिले है उसके बाद भी कुछ ग्रन्थ निकले सुने हैं । उन्हे कृपा कर सावकाश भिजवायेगा ।
विनीत गौरीशंकर हीराचन्द ओझा
(१९) म. म. रायवहादुर
अजमेर डॉ. गो. ही ओझा D. Litt.
२ जनवरी १९४० श्रीमान् मुनि महाराज श्री जिनविजयजी की सेवा मे गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का सविनय प्रणाम । अपरच ॥ आपका कृपा पत्र ता. २७-१२-३६ का मिला । उत्तर मे निवेदन है कि चामुन्डराज का समय तो निश्चित ही है । दूमरी बार मे खाली सम्वत् शब्द लिखा है जो विक्रम सम्वत् निश्चित ही है। पहली बार के सम्बत् में उमी सम्वत् को गुप्त सम्वत लिखा है। गुप्त सम्बत् और विक्रम सम्वत् दोनो एक तो हो ही नही सकते क्योकि गुप्त सम्बत् वाले शिलालेख, ताम्रपत्र और सिक्को की लिपि और चामुन्डराज के ताम्रपत्र की लिपि मे बडा अन्तर है। मेरी राय मे तो गुप्त सम्वत् पाठ अशुद्ध है, जहां विक्रम सम्वत् होना चाहिये।
द्वयाश्रय महाकाव्य मे पाया जाता है कि मोलक्री कुमार पाल ने चौहान राजा आना पर चढाई की। उस समय आबू का राजा विक्रमसिंह कुमारपाल के साथ था (दयाश्रय महाकाव्य सर्ग १६, श्लोक ३३.३४) जिन मण्डनोपाध्याय ने अपने कुमारपाल प्रवन्ध मे लिखा है कि, विक्रमसिंह लडाई के समय आना से मिल गया जिसमे कुमारपाल ने उसको कैद कर आबू का राज्य उमके भतीजे यशोधवल को दिया। विक्रमसिंह उसका वशधर था और यशोधवल उसका भतीजा कैसे हुआ ये सव सदिग्ध बातें थी, जिनका निराकरण उक्त ताम्रपत्र पत्र से हो गया है और जैन लेखको की लिखिहई सव वातें ठीक सिद्ध होती है ।