Book Title: Mere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 122
________________ मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र आगे मैं आजकल यहां हूँ और मथुरा के लेखो का संग्रह तैयार कर रहा हूँ। परन्तु इधर कई वर्षों में बहुत से नये लेख निकले है । मैं वे सब मथुरा और लखनऊ संग्रह करा रहा हूँ। इन सवों के पाठोद्धार के लिये आपकी सहायता की आवश्यकता है । और मैं इसीलिये आपको कप्ट दूंगा । मैंने मथुरा और लखनऊ के क्यूरेटर साहब को पत्र भी लिखा है। उनका उत्तर मिलने पर सेवा मे उपस्थित होऊँगा। उस समय इस पर मुझे जो कुछ पूछना है समस्त निवेदन कहूँगा। मेरे राजगृह अनुपस्थिति के समय आपने मेरी पुस्तकालय से जो सव पुस्तकें ले गये थे। उन सबका कार्य समाप्त हो गया होगा । वे पुस्तकें भी श्रीमान् पृथ्वीसिंह जब यहां लोटे उनको दे दीजिएगा। __आगे सिंघी जैन ज्ञानपीठ के लिये यदि आपको गायक वाड़ ओरिएटल सिरीज की किताबें लेनी हो तो कृपया उनकी लिस्ट यहाँ भेजिएगा । The city stamp & Coin Co. जो हमारे बडे लडके की दुकान है। वे एजेट हुए हैं उनके मार्फत मगवाने से कुछ किफायत होगा। उसकी सूची भी इसके साथ आपको भेजते है। वादू बहादुर सिंहजी से इस बारे मे बात हुई थी। उन्होंने आपसे पूछने को कहा है और भी जो-जो पुस्तके आवश्यक हों, उनकी लिस्ट हमे भेज सकते हैं आपका इधर कब तक आना होगा सूचित करें और जिस समय पधारें दर्शन देने की अवश्य कृपा करें। ज्यादा शुभ सवत १९८६ मि. श्रावण वदि ४। विनीत पूरणचन्द नाहर की वंदना (३७) P. C. Nahar M. A. B. L 48, Indian Mirror Street Vakıl High Court Calcutta 16-8-32 Phone Cal. 2551 परम श्रद्धेय विद्वद्वर्य श्री मुनिजिनविजयजी महोदय की सेवा मेंपूरणचन्द नाहर की सविनय वन्दना बचियेगा। आगे आपका दूसरा

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