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मेरे दिवंगत मित्रो के कुछ पत्र
आपने गुजरात का इतिहास दो भागों में लिखने का विचार किया । वह बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है और आप जैसे असाधारण विद्वान की लेखनी से लिखे जाने से उसका महत्व और भी बढ़ जायगा मेरे पास थोड़ी बहुत सामग्री उस विषय की है । जैन संग्रह तो ऐसी सामग्री से भरे पड़े हैं, परन्तु उनका यहाँ मिलना दुश्वार है। राजपूताने मे गुजरात के सोलंकियों के कई शिलालेख मिलते है । मुझे इस विषय मे आप जो आज्ञा फर्मावेंगे, वह सर्वतोभाव से शिरोधार्य होगी । राजपूताना म्युजियम देखने की प्रापकी इच्छा हो तभी आप पहले से सूचित कर पधारें । मैं आपकी सेवा मे हाजिर रहूँगा । यदि ऐसा अवसर प्राप्त हो तो आपके दर्शनों से मैं अपना अहोभाग्य समझू ।
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"वसंत" में छपा हुआ श्रीयुत ध्रुवजी का लेख ही मुझे देखना है । उसकी स्वतन्त्र आवृत्ति जो वर्नाक्यूलर सोसायटी ने छापी है वही आवश्यक है | आपको इस पत्र के द्वारा एक और कष्ट देना चाहता हूँ और उसके लिये क्षमा प्रार्थी हूँ । वह यह है कि बुद्धि प्रकाश मार्च या फेब्रुअरी १९१० मे तनसुखराम मनसुखराम त्रिपाठी ने "ईडर मा मुरलीधर नां मन्दिर मा रक्षित शिलालेख ( स. १३५४ ) " नामक लेख का अक्षरान्तर प्रकाशित किया था, वह सख्या मेरे पास थी, परन्तु कोई मित्र ले गया । जिसका अब मुझे स्मरण नही है । वह लेख गुजरात के व्याघ्रपल्ली शाखा के सोलकियो के इतिहास पर कुछ नया प्रकाश डालता है ।
मेरी वह संख्या न मिलने से मैंने गुजरात वर्नाक्यूलर सोसायटी से वह संख्या वी. पी. से भेजने को लिखा, परन्तु वहाँ से उत्तर मिला कि उपलब्ध नही है । इसी कारण आपसे यह सविनय प्रार्थना है कि जिस संख्या में उक्त लेख की नकल छपी है, उसकी नकल या मूल संख्या मिल सके तो उसे भिजवाने की कृपा कीजियेगा । वीर धवल का जेष्ठ पुत्र प्रतापमल था और वह अपने पिता की विद्यमानंता मे स्वर्गगमन कर चुका था । वीर धवल के मरने पर वोरम राजा होना चाहता था, परन्तु मन्त्रीश्वर वस्तुपाल ने वीसल को राज्यसिंहासन पर बिठलाया