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मेरे दिवंगत मित्रों के पत्र
का इतिहास, टाडराजस्थान सटिप्पण २ खण्ड और भारतवर्ष के प्राचीन इतिहास की सामग्री की एक प्रति दोनों कल ही डाक से आपकी सेवा मे भेंट कर दूंगा। टाडराजस्थान प्रथम खण्ड की मेरे पास अब कोई विशेष प्रति नही रही है। वह आपको, मैनेजर खड़गगिलास प्रेस, बांकीपुर, पटना से मिल सकेगी। क्योंकि उसी प्रेस ने प्रकाशित की थी। सिरोही राज्य के इतिहास की २०० प्रतियां मैंने ली है। वे वितरण कर दी गई अब मेरे पास अवशेष कोई प्रति नही रही परन्तु The chief minister, Sirohi State, Sirohi को लिखने से मिल सकेगी। सोलकियो के प्राचीन इतिहास का प्रथम खण्ड वि० सं० १६७० मे मैंने प्रकाशित किया था। उसकी सब प्रतियां बिक चुकी। कुछ प्रतियां शेष रही है। वे यहाँ का एक बुक सेलर खरीद कर ले गया। उसको यह मालूम हुआ कि अब इस पुस्तक की कोई प्रति नही रही तब वह द्वि गुणित कीमत मे बेचने लगा और उसकी बहुधा सब प्रतिया बिक गई। केवल आठ दस प्रतियां उसके पास रही है। अभी एक प्रति के लिये एक पत्र आया था तो मैंने लिख दिया कि 'वह बुकसेलर के यहां से ४) रु० मे मिलती है। वहां से मगवा लो। मैंने उसकी दूसरी आवृति का तथा मेरी प्रकाशित सब पुस्तको को छपवाने का अधिकार नागरी प्रचारिणी सभा को दे दिया है। परन्तु सभा के पास इतना काम है कि वह इस समय सोलकियों के इतिहास का दूसरा संस्करण प्रकाशित नही कर सकती। अणहिलवाड़े मे, मूलराज ने सोलकियों का राज्य स्थापित किया उसके पूर्व भी लाट तथा सुराष्ट्र मे सौलंकियो के परतन्त्र राज्य थे। उनके सम्बन्ध का एक लेख मैंने नागरी प्रचारिणी पत्रिका में प्रकाशित किया था। उसकी ५० प्रतियां मुझे मिली थी। उनमें से यदि कोई प्रति होगी तो वह भी कल की डाक से आपकी सेवा में भेज दूंगा। ___मेरी वृद्धावस्था के कारण अव मेरा स्वास्थ्य ठीक नही रहता तो
भी 'अनहिलवाड़ा के सौलंकियो का इतिहास' लिखकर 'माधुरी' नामक "लखनऊ से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका में प्रकाशित कराता