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पं. श्री गौरीशंकर, हीराचन्द जी ओझा के पत्र
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चित्तौड़ में राजा कुमारपाल के दो शिलालेख हैं। जिसमे से एक प्रकाशित हुआ है और दूसरा जो बड़ा है तथा उसमें संवत् नहीं है, अप्रकाशित है। वह लेख चित्तौड के एक खेत मे पड़ा हुआ मिला था, जहाँ से उठवाकर मैंने उसे उदयपुर के म्युजियम में सुरक्षित किया । लेख के कुछ अक्षर घिस गये हैं तो भी अधिकांश सुरक्षित है । उसकी छाप पढ़ने योग्य नही आ सकती। मैंने उदयपुर मे रहते समय उसकी नकल की, परन्तु वह छुट्ट पन्नो पर होने से खो गई। मैंने गत अगस्त मास मे उसकी नकल कराने का उद्योग किया, परन्तु अभी तक वह मेरे पास नही आई। आशा है कि आ जायगी। एक शिलालेख सिद्धराज जयसिंह का मैंने उज्जैन मे देखा जिसमे यशोवर्मा को विजय करने का उल्लेख है। इस प्रकार कुछ शिला लेख अप्रकाशित है । विशेप वृत्तान्त तो जैन साहित्य एव सस्कृत ऐतिहासिक ग्रन्थो से मिल सकता है। जिसका भण्डार तो आपके पास ही है। आप इन वशो का जो इतिहास लिखेंगे, वह अनुपम होगा। मेरे पास जो कुछ सामग्री है, वह आपकी ही है। आप जब चाहे तब उसका उपयोग कर सकते हैं । आपके फिर दर्शन हो तो मैं अपना अहो भाग्य समझूगा। यदि आप कृपाकर छपने से पूर्व आपका लिखा इतिहास मुझे बतला देंगे तो मैं अपनी अल्प वुद्धि के अनुसार उसमे कुछ बढ़ाने की आवश्यकता होगी तो अर्ज कर देऊँगा। रत्नमाला के १२ रन मिलने की बात ई. सं १९१० मे रणछोड़ भाई उदयराम जी ने मुझे दिल्ली मे कही थी परन्तु पिछले ४ रत्नो के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त नही हुमा । आप जव चाहे इधर पधारने की कृपा करें। आपके दर्शनो से मुझे तो अनुपम लाभ होगा।
विनयावनत मेवक गौरीशंकर हीराचन्द ओझा